कविता

खुद लड़ना सीख लिया है मैंने

खुद लड़ना सीख लिया है
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खुद लड़ना सीख लिया है
तेरी ओट से निकलकर
तनाव मन पर भारी है मगर
खुद से नाता जोड़ लिया है मैने

उम्मीदों और आशाओं से नाता तौड़ लिया है
खुद लड़ना सीख लिया है
बहुत कोशिशें की झेल पाऊं
अपने अपनों के वार
अब उठा मन में ,लकडी़ की ही तलवार
गम के मटकों को फोड़ दिया है मैंने ।

हाँ हूँ अकेली अब
साथ नहीं हो तुम
सहमत नहीं किसी “मैं”से अब
इस” मैं” “मैं”को अब तोड़ दिया है मैंने
खुद से नाता जोड़ लिया है
हाँ, हाँ मैंने खुल के लड़ना सीख लिया है।

छोड़ गये बाबुल भी तो क्या
खुद को खुद से जोड़ लिया है
उनकी यादों के हौंसलों से
गहरा नाता जोड़ लिया है
हाँ मैंने खुद लड़ना सीख लिया है।

हिम्मत थी तुम आओगे
शब्दों के बाणों से बीन्ध कर
दोषी को छलनी करोगे
पर तुमने भी तो मुझे
अपने हालातों पे छोड़ दिया है
इस टीस को दर्द बनाकर
गम से नाता
तोड़ दिया है
हाँ मैंने खुद लड़ना सीख लिया है।

बल नहीं है मगर सबला हूँ
खुद की हिम्मत से ही जिन्दा हूँ
तेरे वायदों और बातों के चक्रव्युह से
निकल कर फिर भी जिन्दा हूँ
हाँ मैंने खुद से नाता जोड़ लिया है अब
मैंने खुद लड़ना सीख लिया है ।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान