मुझे नींद क्यों नहीं आती।
मुझे नींद क्यों नहीं आती।
अक्सर देर रात तक
थिरकती है अंगुलियाँ
मोबाईल की दुनिया में
उचट जाती है फिर
नींद आंखों से कहीं दूर
सोचती हूँ फिर
मुझे नींद क्यों नहीं आती।
जहाँ मेरे शब्द करते है
बोलकर नहीं
मोबाईल स्क्रीन पर छपकर
फिर सोचती हूँ हर दोस्त को दूं
थोड़ा सा वक्त
भले ही एक अंगुठे की उपस्थिति से
मगर इस बीच नींद आंखों से उड़ जाती है कोसों दूर
फिर क्यों सोचती हूँ मैं
मुझे नींद क्यों नहीं आती ।
फिर लिख डालती हूँ
कुछ भाव
जिन्दगी की रोजमर्रा की जद्दोजहद के
खो जाती हूँ उलझनों में
तनावों से भरी आंखों में फिर
मुझे नींद कहाँ से आयेगी ।
छोड़ मोबाईल और तनाव को
कहीं दूर रख
रख तकिये पर सर
कनखियों से देख
सोते चैन से हमराह को
कोसती हूँ अपनी आदतों को ।
चैन से सोने के लिये
वक्त व साथ अपनों का जरूरी है ।
अल्पना हर्ष