यह केवल अराजकता फैलाना है?
केरल के शबरीमाला प्रकरण को नारी अधिकार से जोड़कर मीडिया प्रस्तुत कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दशकों से चली आ रही महिलाओं के प्रवेश पर से पाबंदी उठाने से केरल में अराजकता फैल गई है। सत्य यह है कि इस प्रकरण का नारी के अधिकारों से कोई लेनदेन नहीं है। केरल में अनेक मंदिर ऐसे है जहाँ पर पुरुषों का प्रवेश पूर्णत: वर्जित है। अब क्या पुरुष इन मंदिरों में प्रवेश के न्यायालय गए? नहीं। फिर शबरीमला को लेकर इतना विरोध क्यों? दरअसल केरल का हिन्दू समाज जातिवाद, साम्यवाद, धनबल, राजनीति आदि कारणों के चलते पूरी तरह से विभाजित हैं। इसके विपरीत ईसाई , मुसलमान और कम्युनिस्ट पूरी तरह से संगठित है। उन्हें राजनितिक संरक्षण भी प्राप्त है क्यूंकि चुनावों में हिन्दू जहाँ सेक्युलर बनकर वोट करता है वही चर्च और मस्जिदें अपने समर्थक उम्मीदवारों के लिए पूरा जोर लगाती हैं। परिणाम यह निकलता है कि सरकार में संगठित गैर हिन्दू संस्थाओं को पूरी सुनवाई होती है और असंगठित हिन्दू समाज को कोई कभी नहीं पूछता। मान्यता के अनुसार केरल के शबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा को नैष्ठिक ब्रह्मचारी के रूप में पूजा जाता हैं। इस मंदिर में हिन्दू समाज बिना कोई जातिगत भेदभाव के प्रवेश करता है। मंदिर प्रवेश से पहले पूरे 40 दिनों तक हिन्दू संयम और मर्यादा पूर्ण जीवन जीते है। वे नंगे पैर चलते है, मांस-मदिरा से दूर रहते है, प्रात: और सांय दोनों कालों में संध्या करते है, जमीन पर चटाई बिछाकर सोते हैं। यह एक प्रकार का व्रत अनुष्ठान है। मंदिर में जो युवतियां मासिक धर्म का पालन कर रही होती है उनका प्रवेश वर्जित है। यह प्राचीन परम्परा है। सुप्रीम कोर्ट में मंदिर ट्रस्ट ने पुनर्विचार याचिका लगाई जिसे अनसुना कर दिया गया। रात के 2 बजे अर्बन नक्सली और आतंकवादियों की पेशी सुनने वाली कोर्ट ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई तक नहीं करती। क्या यह देश हिन्दुओं का नहीं केवल गैर हिन्दुओं का हैं? प्रश्न केवल नारी अधिकारों का होता तो उस पर मंथन होता। मगर यहाँ तो प्रकरण ही कुछ ओर है?
अब ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज को यह कैसे स्वीकार होता कि हिन्दू समाज जातिगत भेदभाव छोड़कर एक साथ किसी मंच पर एकत्रित हो। उन्होंने नारी के अधिकारों के नाम पर वर्षों पहले कोर्ट के माध्यम से आंदोलन आरम्भ कर दिया। जब उन्हें जब यह अधिकार मिल गया तो उन्होंने इसका किस प्रकार से लाभ अराजकता को बढ़ावा देने के लिए उठाया। अराजकता फैलाने वाले श्रद्धालु नहीं अपितु शहरी नक्सली हैं।
1 . रेहाना फातिमा: जब लोग भगवान अयप्पा के दर्शन करने जाते हैं, तो सर पर कपडे की एक पोटली रख के जाते है, जिसमें भगवान् को चढ़ावा चढाने की सामग्री रखी होती है, जैसे, नारियल, घी आदि। रेहाना फातिमा अपने सर पर पोटली में खून के धब्बे लगी सेनेटरी पैड लेकर गई। पूछो तो संभवत यही कहेगी मेरी श्रद्धा। मैं कुछ भी अर्पित करूँ। अगर कोई विरोध करता है, तोउसकी सोच पिछड़ी है। यही कुतर्क इसने किस ऑफ़ लव के नाम से एक चरित्रहीनता को बढ़ावा देने वाली मुहीम को लेकर भी चलाया था। मैं कुछ प्रश्न रेहाना फातिमा से पूछना चाहता हूँ कि क्या वह यह हिम्मत मक्का और मदीना में भी करेगी? जब वह मुस्लिम है तो उसका इस मंदिर में प्रवेश को लेकर विवाद करना केवल सुर्खोयों में रहने का एक दिखावा मात्र नहीं तो क्या है? इस्लामिक महिलाओं के मुद्दों जैसे ट्रिपल तलाक, बहुविवाह, हलाला, समान अधिकार, सेक्स स्लेव आदि पर रेहाना कभी मुखर नहीं दिखती। इससे यही सिद्ध होता है कि इनका उद्देश्य केवल अराजकता फैलाना है?
2. मंजू जोसफ- अपनी आपको दलित कहने वाली यह महिला ईसाई है। यह केरल की एक दलित संस्था की प्रधान भी है। 2015 में इसने कांग्रेस के टिकट से स्थानीय निकाय चुनाव लड़ा था। इस महिला पर अनेक आपराधिक मामले दर्ज हैं। मंजू पहले CPM और SFI जैसी कम्युनिस्ट संस्थाओं की सदस्य भी रह चुकी हैं। स्पष्ट है कि यह महिला धार्मिक मुद्दे पर अपने लिए राजनीतिक जमीन तैयार करने के सपने ले रही हैं। अर्थात नारी अधिकार तो बहाना है। असली उद्देश्य तो राजनीती चमकाना हैं।
3. कविता जक्कल- यह इसे महिला हैदराबाद की पत्रकार है। जो हैदराबाद के मोजो टीवी में कार्य करती हैं। मंदिर में प्रवेश न मिलने पर वापिस आकर इन्होने परम्परागत पत्रकार के समान एकतरफा बयान दिया कि हम बहुत खतरनाक परिस्थिति का सामना कर वापिस आ रही हैं। हिन्दुओं के मुद्दे से इसे कुछ नहीं लेना। केवल अखबार की हैडलाइन बनानी हैं।
4. 46 साल की मैरी स्वीटी-मैरी स्वीटी ने दूसरी महिलाओं के साथ सबरीमाला में प्रवेश की कोशिश की, हालांकि उन्हें लौटना पड़ा। 46 साल की मैरी केरल के काझाकोट्टम से हैं। इनका कहना है कि उनके शरीर के भीतर एक ईश्वरीय शक्ति ने उन्हें मंदिर तक जाने की ताकत दी है। उनका कहना है कि वो एक बार जरूर मंदिर में जाकर दर्शन करना चाहती हैं। स्पष्ट है कि मैरी स्वीटी ईसाई मत से प्रेरित हैं। चर्च में ननों के बलात्कार की घटना पर इन ईसाई महिला के भीतर कोई ईश्वरीय प्रेरणा नारी पर अत्याचार के विरुद्ध कोई ताकत क्यों नहीं देती?
निष्कर्ष यह है कि हिन्दुओं जातिवाद और अन्य भेदभाव छोड़कर संगठित हो जाओ वर्ना ये शहरी नक्सली तुम्हारा चुन चुन कर शिकार करेंगे।
— डॉ विवेक आर्य