कविता – दीपोत्सव
भेज दिया अरमान तुम्हारा, जो चाहे तुम कर लेना
जितनी भी खुशिया तुम चाहो-अपनी झोली भर लेना
मातु -पिता परिवार हमारा -खुश हो, धर्म हमारा है
जीवन है वरदान उन्ही का -कुछ भी नहीं हमारा है
परहित में जीवन ये बीते -पर हित का ही काम करू
रहे सनातन धर्म हमारा -सदा धर्म का काम करू
कुछ खास नहीं मेरे जीवन में -बस प्रेम शब्द ही आता है
हृदय में एक ख़ास जगह है -वही पर रखने आता है
साथी मेरे हमदम मेरे आवो-खुशियों का अरमान जलाये
नहीं अँधेरा रहे धरा पर -एसा मिल कर दीप जलाये
— हृदय जौनपुरी