सब गोलमाल है
“इस छोटे से शहर की इतनी आबादी नहीं है कि ओवर ब्रिज को इतना फैलाया जाये….और इतने घुमाव है इसमें की एक्सीडेंट भी हो सकते हैं” इंजीनियर ने अपना मत तो रख दिया लेकिन कौन मानने वाला है यहाँ सबको अपने अपने हिस्से की मलाई जो खानी है ..नेता जो ठहरे!
“देखो इंजीनियर बाबू इतने सालों से टेंडर इसलिये अधर में लटका था कि जहाँ ब्रिज के पिलर आ रहे है वहाँ तक हमारी जमीन नहीं आ रही थी, अब जब जहाँ तक जमीन है वहाँ तक पिलर भी तो आने चाहिये तभी तो सब्र का फल मीठा कहलायेगा..
और जितना बड़ा ब्रिज उतना ही आपका काम और उतना ही आपका फायदा भी…
इसलिए ये लीजिये आप भी अपने हिस्से की मलाई” और नोटों की गड्डी आगे सरका दी गई इंजीनियर साहब के सामने..
किसान औनी पोनी दाम में जमीन नेता को बेचकर खुश था, नेता उस पर ब्रिज बनते देखकर मुआवजे की रकम देखकर खुश था, इंजीनियर बाबू अपने कमीशन को पाकर खुश थे और भोली जनता शहर का विकास देखकर खुश थी ।
सब इस मिलावटी खुशी में खुश थे ।
— रजनी