प्यार और अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक : करवाचौथ
करवाचौथ का त्यौहार सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मुख्यतः उतरी भारत मे बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है। सुहागिन महिलाएं सुबह स्नान करके सूर्योदय से चंद्रोदय तक पूरे दिन उपवास रखती है।रात्रि में चंद्रोदय पर अर्घ्य देकर और पति का चेहरा देखकर उपवास खोलती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए बिना अन्न जल ग्रहण किये ये कठिन व्रत बड़ी आस्था और विश्वास के साथ रखती है। सुहागिन महिलाएं जहां अपने अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती है तो अविवाहित युवतियां अपने सुंदर और योग्य वर की कामना के साथ बड़े उत्साह से यह व्रत रखती है।
करवाचौथ का त्यौहार राजस्थान,मध्य प्रदेश,पंजाब,हरियाणा,हिमाचल व उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
महिलाएं एक सप्ताह पूर्व से ही त्यौहार की तैयारियों में लग जाती है। नए वस्त्र साड़ी, सूट,सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएं,गहने,चूड़ियां,कंगन,चप्पल आदि की खरीददारी करती है। ब्यूटी पार्लर से तैयार होकर आती है। व्रत के दिन हाथ और पैरों पर सुंदर सुंदर मेहंदी लगवाती है।महिलाएं एक समूह के रूप में बैठकर अपने जीवन के स्मरणीय पलों को एक दूसरे से साझा कर शाम होने का बेताबी से इंतजार करती है।
शाम होते ही महिलाएं एक दुल्हन की तरह श्रृंगार करके पति की दीर्घायु के लिए शिव परिवार की पूजा करती है और चौथ माता की कहानी सुनती है।
भावनात्मक लगाव बढ़ाता है ये त्यौहार-
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यह व्रत पति-पत्नी में भावनात्मक लगाव और विश्वास को बढ़ाता है। वहीं नवविवाहित युवतियां शादी के बाद आने वाले आपने पहले करवा चौथ के व्रत को लेकर काफी उत्साहित दिखाई देती है। वह अपने परिवार की महिलाओं से साथ व्रत की हर प्रक्रिया पर गहनता से चर्चा करती है और पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ व्रत करती है ।
रात में चांद और पति का दीदार-
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रात्रि में चांद के दीदार के लिए महिलाएं एक समूह के रूप में इकट्ठे होकर चांद के उदय होने का इंतजार करती है चांद निकलते ही अर्घ्य देकर सबसे पहले महिलाएं अपने पति का चेहरा देखती हैं व उनके हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं और फिर चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं।महिलाओ में करवाचौथ का त्यौहार दीपावली से कम महत्व नहीं रखता है ।
चंद्रोदय पर कई जगह महिलाएं छलनी में घी का दीपक रखकर चंद्रमा को अर्घ्य देने और फिर छलनी में से चंद्रमा के साथ अपने चांद (पति ) के चेहरे को देखने की परंपरा भी कई इलाकों में है ।
देश से परदेस पहुंची सांस्कृतिक परम्परा-
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हमारी संस्कृति को विदेशों
प्रवासी भारतीय आज भी शिद्दत से निभा रहे हैं और संस्कृति को विदेशों में महका रहे हैं। प्रवासी महिलाएं आज भी इस धार्मिक पारंपरिक मान्यताओं को बड़ी आस्था से निभाती है। विदेश में रहकर भी महिलाएं करवा चौथ का त्यौहार परंपरागत ढंग से बनाती है। इनको देखकर कई विदेशी महिलाएं भी भारतीय संस्कृति से जुड़ गई है और हमारी संस्कृति को अपनाकर गौरवान्वित महसूस करती है।
आधुनिकता के दौर में ऑनलाइन चांद का दीदार-
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आधुनिक युग में परम्परा निभाने के लिए आधुनिक तौर तरीके भी अपनाए जाने लगे हैं। करवा चौथ का त्यौहार भी इससे अछूता नहीं है। आज दूर सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले पति को करवा चौथ पर अवकाश नहीं मिलने पर महिलाएं ऑनलाइन माध्यम से दीदार करने लगी हैं। वाट्सएप, फेसबुक, वीचैट आदि के माध्यम से विडियोकॉलिंग कर एक दूसरे की कमी को पूरा करते है और चांद के साथ महिलाएं अपने चांद का दीदार कर फिर व्रत खोलती हैं।
आधुनिकता में आधुनिक तरीके अपनाकर भी परम्परा को निभाते चले जाने की भारतीय महिलाओं की सोच को सलाम।
क्या कहती हैं महिलाएं-
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दिल्ली से देश की प्रमुख कवयित्री व लेखक डॉ पूनम माटिया कहती है ‘:-
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रोज़मर्रा के जीवन में नवीन उत्साह का संचार करते हैं पर्व और करवा चौथ का त्योहार भी इसी परंपरा को निभाते हुए जहाँ एक ओर पति-पत्नी के मध्य में प्रेम भाव की वृद्धि करता है वहीं भावी पति-पत्नी को अपने प्रेम के समुद्र को छलकने का अवसर देता है। उपवास तो अधिकतर स्त्रियाँ रखती ही हैं किंतु जब करवाचौथ का उपवास रखने की बात होती है तो उत्साह के गुणा बढ़ जाता है । पति भी उपहार देकर पत्नियों को प्रसन्न रखने का प्रयास करते हैं। कई पुरुष भी व्रत रख अपनी पत्नी का पूर्ण रूपेण साथ निभाते हैं।
भारतीय संस्कृति का प्रतीक यह पर्व चाँद को देखकर ही खोला जाता है और चन्द्रोदय की प्रतीक्षा दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता।
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हैदराबाद से साहित्यकार सुवर्णा परतानी के विचार में
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भारत धार्मिक परंपराओं का देश है। जहां हर रिश्ता एक परंपरा से बंधा है। हिंदू धर्म में कर वा चौथ का दिन एक सुहागिन नारी के जीवन में सबसे अहम दिन होता है ।नारी को शक्ति का स्वरुप माना जाता है,करवाचौथ के दिन सुहागिन नारी निर्जल व्रत करके पति की लंबी आयु कामना करती है,और सदा सुहागन का दान मांगती है। चांद से थोड़ा रूप चुरा कर ,सोलह श्रंगार कर, चांद का दीदार करे के पिया के हाथ से पानी पी कर व्रत का समापन करती है। बदलते परिवेश में आज की नारी के मन में यह सवाल उठता है कि ऐसी व्यवस्था पुरुषों के लिए क्यों नहीं है ?मेरा मानना है माना जाता है कि पुरुषों में ऐसी दिव्य क्षमता होती ही नहीं है जिससे वे अपनी पत्नी के स्वास्थ्य ओर दीर्घायु के लिए माध्यम बन सके।
कोलकत्ता प्रवासी कुशल ग्रहणी सुमन अग्रवाल का
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कहना है ।प्रेम और आस्था का प्रतीक करवा चौथ हमारे हिंदू समाज में बहुत महत्व रखता है ।सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरे दिन उपवास रखती है ।रात्रि में चंद्रमा के दर्शन कर पूजा करती हैं ।और पति के हाथों से जल् ग्रहण कर👌 व्रत का समापन करती है। करवा चौथ सुहागन महिलाओं के अखंड सौभाग्य की कामना का त्योहार है।
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— शम्भू पंवार