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आस्था बड़ी या देश बड़ा – संविधान बड़ा या कथित पुराण

भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है. यहाँ सभी धर्मों का आदर समान भाव से किया जाता है. सुबह सुबह जहाँ मंदिरों से घंटियों की आवाज सुनाई पड़ती है वहीं मस्जिदों से अजान के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं. गुरूद्वारे से शबद यानी गुरुवाणी गूंजती है तो गिरिजाघरों में भी प्राथना सभाएं की जाती है. हमारे देश का तिरंगा झंडा भी इन्ही धर्मों का संयुक्त रूप है. यहाँ की गंगा यमुनी तहजीब विश्व विख्यात है. सभी महापुरुषों ने दूसरे धर्मों का आदर करते हुए अपनी आस्था को मजबूत रखने का सन्देश दिया है. हिन्दू धर्म में कुछ कुरीतियाँ कुछ अन्धविश्वास बीच बीच में घुंसपैठ रहे, तत्पश्चात ही जैन, बुद्ध और दूसरे सम्प्रदाय पैदा हुए जो हिन्दू धर्म के ही परिष्कृत रूप में अपनाये गए और स्वीकार भी किये गए. गुरुनानक ने भी राम को माना है और कबीर ने भी ईश्वर और अल्लाह को एक करने की भरपूर कोशिश की. साईं के अनुसार सबका मालिक एक है. महात्मा गांधी के प्रिय भजन ईश्वर अल्लाह तेरो  नाम सबको सम्मत्ति दे भगवान्… फिर बीच-बीच में विभाजन रेखा खींचने की कोशिश क्यों?

पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था- हमें राम मंदिर बनाना है पर भारत माता के मंदिर को खंडित कर नहीं. अब जब भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है तब से ही हिन्दू राष्ट्र और हिन्दू राग अलापने की कोशिश की जा रही है. मैं कहता हूँ – आप हिन्दुओं को संगठित करें, तोड़ने या भड़काने की कोशिश न करें… पहले शूद्रों को मंदिर प्रवेश से वर्जित किया जाता रहा और अब महिलाओं के लिए कुछेक मंदिर वर्जित है. कुछ महिला संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी और समानता के अधिकार पर संविधान के नियमानुसार उन्हें विजय भी मिली शिग्नापुर के शनि मंदिर में प्रवेश का उनका प्रयास सार्थक हुआ. पर अभी सबरीमाला में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी अभीतक महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया है.

अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पास अब देश की अदालतों के लिए भी एक सलाह है. वो चाहते हैं कि अदालतें व्यावहारिक हों और वैसे ही फ़ैसले दें, जिन्हें अमल में लाया जा सकता है. यह सलाह सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के संदर्भ में दी गई है, जिसमें स्वामी अयप्पा के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई है. अमित शाह ने यह बयान केरल के कन्नूर में ज़िला बीजेपी कार्यालय के उद्घाटन के मौक़े पर आयोजित सार्वजनिक सभा के दौरान दिया. कन्नूर वही इलाक़ा है जहां कई दशकों से आरएसएस-बीजेपी और सीपीएम के कार्यकर्ताओं में झड़प और हत्याएं होती रहती हैं.

अमित शाह ने यह सलाह इस वजह से भी दी है क्योंकि सबरीमला मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जो हंगामे और विरोध प्रदर्शन हुए हैं उनमें 2500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया. शाह ने कहा कि सदियों पुरानी धार्मिक मान्यताओं की रक्षा करते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करने वाले भाजपा, आरएसएस एवं अन्य संगठनों के 2500 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्होंने केरल सरकार पर आरोप लगाया कि वह पुलिस की ताकत से आंदोलनकारियों को दबाने की कोशिश कर रही है. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की राज्य सरकार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

स्वामीय शरणम् अयप्पा के मंत्र से अपने भाषण की शुरुआत करने वाले शाह ने कहा कि मुख्यमंत्री को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में चल रही क्रूरता को रोकना ही होगा. उन्हें समझना होगा कि राज्य की महिलाएं भी शीर्ष अदालत के इस निर्णय के खिलाफ हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि केरल सरकार सबरीमाला मंदिर और हिंदू परंपराओं को नष्ट करने की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा उन्हें हिंदू भावनाओं के साथ जुआ खेलने की इजाजत नहीं देगी. केरल की कम्युनिस्ट सरकार मंदिरों के खिलाफ साजिश कर रही है. इस सरकार ने राज्य में आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले भी केरल सरकार ने कोर्ट के कई आदेशों को लागू नहीं किया है. उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए ही अमल में लाया जाना चाहिए. गौरतलब है कि केरल का कन्नूर जिला कम्युनिस्ट और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच खूनी संघर्ष का गवाह रहा है.

हमारे न्यायालय संसद के कानून और संविधान के अनुसार ही कोई भी फैसला देते हैं. वे न्याय का फैसला सुनाते समय धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र आदि का भेद नहीं करते हैं. ऐसी मान्यता है और अधिकांश मामलों में साक्ष्य एवं कानून के अनुसार ही फैसला सुनाते हैं. हालाँकि कई बार उनके फैसलों पर सवाल उठते रहे हैं और कई फैसले बाद में बदले भी जा चुके हैं. फिर भी गणतंत्र में आखिरी सहारा न्यायालय अर्थात न्यायपालिका ही है.

भाजपा की वर्तमान सरकार या पहले की भी कई सरकारों पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग पर आवाजें उठती रही हैं. आज भी आवाज उठना लाजिमी है. पहले चुनाव आयोग पर आरोप लगे, EVM प्रणाली पर आरोप लगे, तत्काल में सीबीआई पर आरोप लगे हैं यह मामला अभी विचाराधीन ही चल रहा है. अब सेना प्रमुख और सैन्य सलाहकार पर भी आरोप लग रहे हैं. राफेल का मुद्दा गरम है. इस पर संतोषजनक जवाब सरकार की तरफ से नहीं आया है. मुद्दा गरम है विपक्ष को मौका है तो राजनीति होगी ही. सभी दल अपने अपने हिसाब से मुद्दों को भुना रहे हैं. पर विपक्ष अभी उतना सशक्त नहीं हुआ है न ही उनको एक सूत्र में बाँधनेवाला कोई सर्वमान्य नेता उभरा है. राहुल गांधी अपने आप को पहले से ज्यादा विकसित और आत्मविश्वासी साबित कर रहे हैं. देश के सामने अब तक दो ही विकल्प रहे हैं. कांग्रेस नीत गठबंधन या भाजपा नीत गठबंधन. अभीतक इन्ही विकल्पों पर हम अपना मत देते रहे हैं. पिछले दस साल के कांग्रेस गठबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो भाजपा विकल्प बनी और श्री नरेन्द्र मोदी लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे. उनकी वक्तृत्व कला और चुनावी भाषण भाजपा के लिए वरदान साबित होती रही है. उनके समकक्ष अभी दूसरा नेता नजर नहीं आता. पर उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली व्यक्ति नजर आने लगा है.

राजतन्त्र के ज़माने में चक्रवर्ती राजा हुआ करते थे, जिनके आगे सभी राजा हार मानकर उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते थे. प्रजातंत्र में जनता फैसला लेती है, किसे प्रधान या शासक बनाया जाय. भारत की स्वाधीनता के बाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू शक्तिशाली बनकर उभरे, फिर इंदिरा गाँधी शक्तिशाली बनी, फिर सोनिया गाँधी को भी शक्तिशाली माना जाने लगा. अभी मोदी से भी ज्यादा शक्ति का प्रदर्शन राजनीति के चाणक्य कहे जानेवाले श्री अमित शाह हैं. वे कहीं से भी किसी को भी निर्देश या कहें आदेश दे सकते हैं. वे अपनी रणनीति में अब तक सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध हुए हैं. सरकार में न रहते हुए भी सरकार उनके इशारे पर चलती हैं. प्रमुख संवैधानिक संस्थाएं उनके वश में है. न्यायपालिका को भी लगभग अपने वश में कर चुके हैं पर खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को निर्देश देने का उनका सार्वजनिक बयान काफी अहम माना जा रहा है. अब प्रधान मंत्री पद के दूसरे दावेदार श्री आदित्यनाथ योगी भी बयान देने लगे हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मामले में निर्णय दे सकती है तो राममंदिर मुद्दे पर क्यों नहीं? यानी यहाँ भी न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा रहा है. न्यायपालिका कभी कभी जनभावनाओं को समझती है और वैसे फैसले तुरंत नहीं सुनाती जबतक कि परिस्थिति अनुकूल न हो.

चुनवा का समय नजदीक है फिलहाल पांच राज्यों में चुनाव है. भाजपा इनपर कब्ज़ा करना चाहेगी और कांग्रेस या विपक्ष भाजपा को हराना चाहते हैं. वैसे में कोई भी रणनीति बनाई जा सकती है जिससे उस दल का फायदा होरणनीतिकार लगे हुए हैं. जनता को रोजी-रोटी मकान  के साथ सुरक्षा और जनसुविधा भी चाहिए जिसके लिए वह सरकार चुनती है और समुचित टैक्स देती है. वर्तमान केंद्र सरकार की कुछ योजनायें जरूर अच्छी है. गरीबों को फायदा पहुंचा रही है पर मध्यम वर्ग महंगाई और बेरोजगारी के मार से मर रहा है. ऊपर से असुरक्षा का वातावरण उसे भयभीत कर रहा है. न्यायपालिका और प्रशासन को जनता की सुरक्षा के मुद्दे पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. बाकी तो राम भरोसे सब कुछ चल ही रहा है. आगे भी चलता ही रहेगा. इसलिए अंत में जय श्रीराम और जयहिंद!

  • जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

2 thoughts on “आस्था बड़ी या देश बड़ा – संविधान बड़ा या कथित पुराण

  • कालीपद प्रसाद

    न्यायपालिका गणतंत्र का एक स्तम्भ है | वह जो भी निर्णय देता है ,सब भारतीय संविधान के अनुसार देता है | वहां देश के विद्वान न्यायाधीश बैठे हैं | उन्हें यह कहना कि न्यायालय जन भावनायों के अनुरूप फैसला दे , न्यायालय और सम्विधान का अपमान है |देश संविधान से चलेगा या मनु संहिता से ?

    • जवाहर लाल सिंह

      जी आदरणीय कालीपद प्रसाद जी, देश को तो संविधान से ही चलना है. हाँ कुछ लोग संशोधन कर अपना मंतव्य जाहिर कर रहे हैं… पर यह जनभावना का दोहन या एक तरह से मजाक उड़ाना ही है…. प्रतिक्रिया के लिए सदर आभार!

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