“गज़ल”
वज़्न – 221 2121 1221 212 अर्कान – मफ़ऊलु-फ़ाइलातु-मफ़ाईलु-फ़ाइलुन बह्र – बह्रे मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ मक्फूफ़ महज़ूफ़ काफ़िया – घटाओं (ओं स्वर) रदीफ़ – में खो गया
“गज़ल”
जब चाँद का फलक गुनाहों में खो गया
तब रात का चलन घटाओं में खो गया
जज्बात को कभी मंजिलें किधर मिलती
हमसफर जो था वह विवादों में खो गया।।
मौसम बिना कभी नभ बिजली न गरजती
स्वाती दिखी गगन जल हवावों में खो गया।।
आवाज क्या हुई पथ उजियार हो रहा
दिल की पुकार मगर विवादों में खो गया।।
उठता रहा फलक है अपने गुमान पर
पर गोंद का मचलना दिशाओं में खो गया।।
हर वक्त नहीं मौसम अनुकूल किसी का
परवाह घिर जिगर नजारों में खो गया।।
गौतम सजा नहीं सड़क आम दिए जा
कर बेकरार दिल सवालों में खो गया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी