मेरा गांव!!
आवो कुछ भूली बिसरी बात करे ।
क्या खोया क्या पाया, वो बात करे।।
बचपन का जीवन-रोते-हंसते बीता ।
राहो मे मस्ती, स्कूल मे डरते बीता।।
कभी भरी दुपहरी , खेला बागो मे ।
कभी गाय संग बीता, बाल गोपालो मे।।
वैभव मे बीता या, जिया गरीबी मे ।
सचमूच वैसा मजा नही,अमीरी मे ।।
आवो कुछ भूली बिसरी बात करे ।
क्या खोया क्या पाया बात करे ।।
गोबर से लीपे, रहते, आँगन बाडे मे ।
मगरू संग आग सेकते, सब जाडे मे ।।
जो भी गुजरे , राम-राम हो जाती थी ।
दौड़ लगा मिलती,डाक की पाती थी ।।
कोई माता हाल जान, रो पडती थी।
कोई बहन भाई का खत ले अकडती थी।।
बिरहन कैसे पूछे ,पिया का हाल डरे ।
आवो कुछ भूली-बिसरी बात करे ।।
कितना वजन होता था, इँसानी बात मे।
जब रहता था संयुक्त परिवार साथ मे ।।
अब तो सब नकली है-किसको साथ कहे।
आवो कुछ भूली-बिसरी बात करे ।।
— हृदय जौनपुरी