ग़ज़ल 2
छोटा सा एक आशियाना चाहता हूं
अपनी दुनिया मैं बसाना चाहता हूं
मुझसे पूछे कोई गर क्या चाहता हूं
प्यार का गुज़रा ज़माना चाहता हूं
जालिम ने काट डाले मेरे बाजू
फिर भी जोखिम मैं उठाना चाहता हूं
साकी तूने है पिलाया खूब मुझको
आज तुमको मैं पिलाना चाहता हूं
अपने दिल की मैं लगी को आज सुन लो
आंसुओं से फिर बुझाना चाहता हूं
तेरी उल्फत से मिले जो दर्द दिल को
सारी दुनिया से छुपाना चाहता हूं
देख मैंने जो बनाया था घरौंदा
अपने हाथों से गिराना चाहता हूं
कोई बोले नाम उनका इससे पहले
नाम उनका मैं बताना चाहता हूं
टूटी चूड़ी हाथ लेकर नाम तेरा
अपने हाथों से मिटाना चाहता हूं।
— विनोद आसुदानी
बहुत खूब लिखा आपने 👌
अच्छी ग़ज़ल !