जो उकेरे है कागज पर कुछ शब्द
जो उकेरे है कागज पर कुछ शब्द
वो सिर्फ शब्द ही नही
मेरे अंदर दबे हुए वे जज्बात है
जिन्हे मै कभी किसी के सामने कही
हाँ नही कही
ये शब्द कोई आसान नही
ये वही शब्द है जो
हमारे तुम्हारे बीच न जाने
कब कैसे निकल आये थे
और आज यही मेरे अंदर
मेरे अहसास मे पिरोकर
न जाने कितने शब्दो को जन्म दिये है
तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हो का
यथार्थ चित्रण करते है ये शब्द
अब मै इन्ही के सहारे जीती हूँ
हो सके तो तुम भी समझ जाओ
मेरी भावनाओ को
कुछ शब्द तुम भी जोड़ दो
मेरे अहसासो के साथ
दे दो नयी मोड़ जिंदगी में
जो शब्द कागज पर उकेर कर रह गये है
हकिकत कर दो हमदोनो के जिंदगी मे
फिर से वही खुशियाँ
फिर से वही सौगात
फिर से हो जाये
हमदोनो की मुलाकात।
— निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’