गीतिका- अजीब रिवाज
दर्पण भी यूँ झूँठ बोलने लगा।
नकली को भी सच बताने लगा।।
चेहरा आया सामने जो उसके।
देख कर उससे बतियाने लगा।।
कितने रूप बनाओगे इंसान।
वह दिन और रात गिनाने लगा।।
झूँठ फरेब और धोखा सब कहे।
वह शब्दकोश सारा चुराने लगा।।
दुनिया का ये अजीब रिवाज है ।
हर कोई किसी को सताने लगा।।
वक़्त कटता जा रहा हर रोज ही।
आदमी ,आदमी को दबाने लगा।।
–– कवि राजेश पुरोहित