लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल
एकता के सूत्र में जो बाँधा था देश को
सुख दुख को त्यागकर वो भूला था वेश को
देश की स्वतंत्रता में रात दिन लगा रहा
स्वतंत्रता के बाद भी दुख कुछ बना रहा
देश भर के राजसी भी पूर्णता स्वतंत्र थे
उनको लाने के लिये एक ही वो संत थे
जब बंट रहा था देश पूरा उस समय बेहाल था
देश की अखंडता का सबसे कठिन सवाल था
धर्म जाति और भाषा का भी विघटित रार था
देश में फिर से अब अधीनता का प्रहार था
मत करो तुम खंड यारो देश अब बंट जायेगा
जिंदगी का स्वप्न सबका साथियों घट जायेगा
अफरा तफरी खींचा तानी देश में मची ही थी
राजाओं की तरफ सारी प्रजा भी खिंची ही थी
अब देश की स्वतंत्रता का हो रहा खिलवाड़ था
कैसे बचायें देश को जलने लगा अंगार था
लौह का संकल्प यारो एकता का कल्प था
गाँवों को एकत्र करना एक ही विकल्प था
प्यार की जुबान से अधिकार का वादा किया
एकता की नींव में सब जमने का इरादा किया
देश पहले तंत्र था अब देश सबका संघ है
देश की हर ईट यारो नागरिकों का अंग है
धर्म ,जाति ,भाषा में अब एकता होने लगी
टूटेंगें न हम सदा सब बीज इक बोने लगे
— ओम नारायण कर्णधार