गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

, आधार छंद–विधाता, मापनी- 1222 1222 1222 1222 समांत – आस, पदांत – होता है

“गीतिका”
उड़ा आकाश कैसे तक चमन अहसास होता है
हवावों से बहुत मिलती मदद आभास होता है
जहाँ भी आँधियाँ आती उड़ा जाती ठिकाने को
बता दौलत हुई किसकी फकत विश्वास होता है।।

बहुत चिंघाड़ता है चमकता है औ गरजता घन
बिना मौसम बरसता है छलक चौमास होता है।।

धुँआ उठता कभी नभ से लगे काला कलूटा सा
कभी सत रंग में खिलता चटक इंद्रास होता है।।

धरा से देखते हैं जब तमन्ना की उड़ानों को
मगर चल भीग जाते हैं फलक संत्रास होता है।।

सुहाना खूब लगता है पहाड़ों को तनिक देखो
रगड़ से आग लगती है दहन मधुमास होता है।।

सुनो गौतम कभी अपने रहन पर नाज़ तो खाओ
न जाओ गैर की महफ़िल नयन परिहास होता है।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ