गज़ल
वज़्न– 1222 1222 122 अर्कान– मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन, क़ाफ़िया— वास्ता (आ स्वर की बंदिश) रदीफ़ – है
कहो जी आप से क्या वास्ता है
सुनाओ क्या हुआ क्या दास्तां है
समझ लेकर बता देना मुझे भी
हुआ क्या बंद प्रचलित रास्ता है।।
चले जा चुप भली चलती डगर ये
मना लेना नयन दिग फरिश्ता है।।
खुली होगी शहर की वह गली भी
जहाँ घर अपन का चलता पता है।।
बुला लेना बहुत हैं आदमी भी
नहीं कोई गिला मन पसिजता है।।
लगा है घाव प्रतिपल सबक लेना
अभी का ठेस अति आहिस्ता है।।
न कहना बात गौतम से कभी भी
वहाँ पर आज भी इक गुलिस्ता है।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी