वो जब से लौट आए से मेरे शहर में
वो जब से लौट आए से मेरे शहर में
दिन में ईद,रात में दिवाली हो गई है
उनके आने की खबर की ये तासीर है
खेत-खलिहान,नदी,पर्वतों में खुशहाली हो गई है
वो जो निकले हैं सँवर के मेरे छत पे
तो अमावस भी तारों वाली हो गई है
अपने होंठों से जो चूमा उन्होनें हवाओं को तो
आसमाँ के गालों पे हया की लाली हो गई है
तुम आई हो तो ये बरसातें भी लौट आई हैं
तुम्हें सराबोर करने को मतवाली हो गई हैं
शायद रब को भी था तुम्हारे आने का इंतज़ार ,तभी
मंदिरों में आरती और मस्जिद में कव्वाली हो गई है
सलिल सरोज