कविता

कोई माँ देखे है रास्ता…

कोई माँ देखे है रास्ता, लौटे फूल कोई डाली पर
कोई बच्चा देखे रास्ता, पिता का इस दिवाली पर

ट्रेनों कि हालत देखो, जैसे कि युद्ध छिड़ा हो
अपने गाँव तक जाना, मानो कोई लक्ष्य बड़ा हो

प्लेटफार्म का सारा मजमा, देख के ऐसा है लगता
इंसानों का सारा दरिया, भारत में ही है बहता

किसी की खुशियां है वेटिंग, किसी की है आर ए सी
जहाँ जगह मिली बैठे, क्या स्लीपर क्या ए सी

बसों का भी क्या कहना, ठूंसे ठूंसे दिखते हैं
बैगों और सूटकेशों के बीच फंसे-फंसे दिखते हैं

नीयत विमानों की भी, इन दिनों है ठीक नहीं
पांच हजार की टिकटें, पंद्रह में है बिक रही

मन कहाँ भरता है बोलो मोबाइल के संदेशों में
तभी अम्मा घबराती थी भेजने को परदेशों में

उम्मीद है यह कि बदलेंगे ये आवाजाही के रस्ते
उम्मीद है यह कि निकलेंगे दानी -पानी के रस्ते

उम्मीद है यह कि एक दिन सब मनचाहे ट्रेन में बैठेंगे
उम्मीद है यह कि एक दिन सब पंछी अपने घर को लौटेंगे

गौतम कुमार सागर, वड़ोदरा

गौतम कुमार सागर

सीनियर मैनेजर (बैंक ऑफ बड़ौदा ) लेखन कार्य :- विगत बीस वर्षों से हिन्दी साहित्य में लेखन. दो एकल काव्य संग्रह प्रकाशित . तीन साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित . विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . अखिल भारतीय स्तर पर " निबंध , कहानी एवं आलेख लेखन " में पुरस्कृत. संपर्क :- 102 , अक्षर पैराडाईज़् नारायणवाडी रेस्तूरेंट के बगल में अटलादरा वडोदरा (गुजरात) मो. 7574820085