दिवाली का महत्व
आज हमारे देश में दीपावली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है लेकिन इस दिवाली में एक खासियत जरूर है पटाखो की आवाज बहुत कम सुनने को मिली क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रतिबंध लगा दिया है।अच्छा ही किया है ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट के सारे नियमो तथा क़ानूनों का पालन करना चाहिये , पटाखो से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही हमारे शरीर के लिये भी बहुत ही हानिकारक है क्योकि पटाखो से प्रदूषित वायु हमारे शरीर के भीतर जाकर फेफडों के साथ दिल को भी नुकसान पहुंचाती जिससे हार्ट अटेक की संभावना बढ जाती है । सुप्रीम कोर्ट ने पटाखो पर प्रतिबंध तो लगाया ही है साथ में उन दूध डेरियो पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिये जो प्रत्येक त्यौहारों के आने पर मिठाइयों के साथ मिलावट करने लगते है जो हमारे शरीर के लिये भी काफी हानिकारक होते है ।
इतिहास के अनुसार जहाँ तक अनुमान लगाया जा सकता है वहां तक दिवाली मे पटाखो का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया दिवाली तो सिर्फ प्रकाश का त्योहार है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का प्रतीक है हम सभी लोग दिवाली आने से पहले अपने घरों तथा अपने आस पड़ोस की सफाई करते है ताकि दिवाली अच्छे से मनाई जा सके और हमे दिवाली का प्रतिफल प्राप्त हो सके लेकिन दीपावली के त्यौहार के ही दिन पटाखो तथा अन्य सामग्रियों से फिर से अपने घरों तथा पर्यावरण को गंदा करने लगते है ऐसा करके हम दिवाली के त्यौहार का अपमान कर रहे हैं
दिवाली तो स्वच्छता का प्रतीक मानी जाती है लेकिन हम सब उसे गंदगी की दासी बना देते हैं ये कहाँ की सभ्यता है ।
हमारे देश में दिवाली के त्यौहार की बहुत उत्सुकता होती है सभी लोग करीब एक महीने पहले अपने घरों की सफाई में जुट जाते है और दिवाली आते आते घर को बिल्कुल स्वच्छ कर दिया जाता है और फिर सपरिवार के साथ मिट्टी के दिये जलाकर दिवाली के त्यौहार को सेलीब्रेट करते है ।और त्योहार को मनाने में हम सब पटाखे तथा अन्य सामग्री इस्तेमाल करके उसी साफ पर्यावरण को प्रदूषण में तब्दील कर देते है हम सब त्योहारों के स्वागत के लिये तो अपने आपको तथा पास पड़ोस में बहुत साफ सफाई की रौनक दिखाते हैं लेकिन जब त्योहार की बिदाई होती है तब वही रौनक कचरे का ढेर बन जाती है और हम सब देखते रहते हैं ।
दीपावली का त्यौहार त्रेता युग से मनाया जाता है जब भगवान श्रीराम रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे तब सभी ग्रामवासी दीपक जलाकर भगवान श्रीराम का स्वागत किया था क्योकि उस समय का लोकतंत्र प्रजा के हित के लिये था आज के लोकतंत्र की अपेक्षा प्राचीन काल का लोकतंत्र बहुत अच्छा था ,न कोई भ्रष्टाचार था और न ही किसी भी तरह का कुशासन ।
त्रेता युग के इतिहास से ये जानकारी प्राप्त हुई है कि उस समय की प्रजा सुखी और संपन्न थी कोई किसी को परेशान नही करता था पूरा का पूरा शासन जनता के हित लिये ही था उस समय सारी प्रजा राजा से खुशी रहती थी इसलिये भगवान श्रीराम के आगमन पर सारे देश के लोग दीपक जलाये थे और उसी दिन से प्रतिवर्ष दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा
अगर आज के शासन को देखा जाये तो सरकार बनती तो हैं जनता के हित के लिये ,लेकिन जनता के हित होने से पहले सरकार अपना हित देखती है और बाद में थोडा बहुत हित जनता तक पहुंचता है जिसके कारण देश की जनता का विकाश पूर्ण रूप से पूरा नहीं हो पाता और जनता हमेशा ही सरकार से रुष्ट बनी रहती है
हम सब दिवाली का त्योहार तो प्रतिवर्ष मनाते है और सभी देशवासियों को पता है कि दिवाली का त्योहार अच्छे प्रशासन के संगठित तथा जनता का हित होने से जनता द्वारा ही मनाया जाता है लेकिन हमारे देश के प्रशासन में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता चारो तरफ भ्रष्टाचार, चोरी ,डकैती ,धांधली ,दूसरे की संपत्ति हथियाना , मिलावट आदि सभी तरह के कुकृत्य चल रहें है ।एक ओर जहां मानव स्वार्थ के लिये प्रकृति से छेडछाड करता है तो दूसरी तरफ प्रकृति भी अपना बदला लेने के लिये मानव पर प्रकोप करके अपने आप को बराबर करने की कोशिश करती है फिर भी मानव अपने स्वार्थ के वश में बुरे परिणाम की चिन्ता किये बिना अपने को चालू रखता है और अंत में यही मानव प्रलय का कारण बन जाता है ।
मानव का जन्म एक बहुत ही होशियार प्राणी के रूप में हुआ है लेकिन लोभ मे फंसकर सिर्फ वह अपने स्वार्थ को देखता है और अपने स्वार्थ के लिये दूसरों के लिये घातक साबित हो जाता है ।
अब हमें यदि सत्यता मे दीपावली त्यौहार को मनाना है तो हमें सभी कुकृत्य को छोडकर अच्छे कर्मों को करना होगा तथा हमारे अन्दर जो भी अन्धकार व्याप्त है उसे आज इसी दिवाली को प्रकाश में बदलना होगा जिससे हमारा दिवाली का त्योहार सफल हो सके और त्रेता युग का प्रशासन फिर से वापस आ जाये तभी हमारा दिवाली का त्योहार पूर्ण रूप से सफल हो सकेगा ।
(ओम नारायण कर्णधार )