अल्फ़ाज़
अल्फ़ाज़
कागज़ कलम लिए आज हूँ,
तुमको सोचती आज हूँ ,
ख्वाब से निकाल लूँ,
तुमको साकार कर लूँ ,
तुम्हारे ख्याल को ,
शब्दों में ढाल लूँ ,
कहाँ से शुरू करूँ ,
कहाँ खत्म करूँ ,
समझ नही आता ।।
तेरी हर अदा पर ,
प्यार आता है ,
तेरा रूठना भी ,
मन मोह लेता है ।।
तेरी बातें इतनी है ,
किस किस को ,
कागज़ पर उतार लूँ।।
तेरी मुस्कान पर ,
न्योछावर सारा जहाँ,
उसमें खो जाती हूँ ।
तेरी आंखों की चमक,
जो बहुत कुछ बोलती ,
वो अनकहे लफ्ज़ ,
जो मुझे सुनाई देते ।।
रोबदार व्यक्तित्व तेरा,
तेरी हर अदा ,
तुझे भूलने नही देती,
जितना चाहूँ भूलना ,
उतना याद आते हो ,
कागज़ पर तुम्हारे ,
ख्याल उतारने को ,
कागज़ कलम लिए हूँ
तुममें खो गई इतना ।।
भूल गई तुझमें,
कैसे कितना तुमको ,
कागज़ पर उतारूँ ,।
वो अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ ,
जो तुमको सही पहचान सके ।।
सारिका औदिच्य