मुझको अफवाहों से डराता है क्या
मैं खुद जवाब हूँ हर सवाल का
मुझको अफवाहों से डराता है क्या
मुझको प्यास है सात समंदर की
मुझको फिर बूँद-बूँद पिलाता है क्या
मैंने आसमाँ को बाँहों में जकड़ रखा है
तू मुझको ख़्वामखाह ज़मीं पे गिराता है क्या
मैंने कितने होंठों को हुश्न के काबिल बना दिया
अब बेअदबी से तू मुझे इश्क़ सिखाता है क्या
मैंने सच को सच ही कहा है हमेशा
तू झूठ बोलकर मुझे आँखें दिखाता है क्या
करनी थी इस जीनत की हिफाज़त तुझे
तूने ही फ़िज़ा लुटा दी,तो बताता है क्या
गले मिलकर दिल में ज़हर घोल दिया
अब मुस्कुराकर इस कदर हाथ मिलता है क्या
क्या मंदिर,क्या मस्जिद सब तबाह कर दिए
तू मसीहा है तो चेहरा फिर छिपाता है क्या
— सलिल सरोज