“गज़ल”
वज़्न – 122 122 122 122, अर्कान – फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन, बह्र – बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम, काफ़िया – आएँ स्वर, रदीफ- जाएँ
“गज़ल”
बहुत सावधानी से आएँ व जाएँ
डगर पर कभी भी न गाएँ बजाएँ
मिली जिंदगी को जिएँ शान से सब
हक़ीकत चलन को बनाएँ सज़ाएँ।।
बड़ी गाड़ियों के बड़े हैं नजारे
बचें आप खुद ही न दाएँ से जाएँ।।
सदा ध्यान अपनी सुरक्षा लगी हो
न घर की व्यथा राह खाएँ खुजाएँ।।
नहीं है कभी दोस्त पल-पल बड़ा है
निहारें पलक स्नेह भाएँ भुजाएँ।।
हुई गर कोई चूक किससे कहेंगे
न रहती जहाँ कोई छाएँ छुजाएँ।।
बहुत बेख़बर राह होती है गौतम
नहीं जान सस्ती जिलाएँ जिजाएँ।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी