“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
वीरा की तलवार अरु, माथे पगड़ी शान।
वाहेगुरु दी लाड़िली, हरियाली पहचान।।
हरियाली पहचान, कड़ा किरपाण विराजे।
कैसी यह दीवार, बनाई घर-घर राजे।।
कह गौतम कविराय, नशा मत करना हीरा।
मत हो कुड़ी निराश, कलाई थाम ले वीरा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी