अंधेरा
अंधेरा बहुत है मेरे जीवन में
मैंने ही बुलाया है आंगन में
सच कडुआ होता ही है
पर मानना पड़ता है
माने बिना बदलाव आता नहीं
बदलाव का अंत होता नहीं
अंधेरा दूसरों व्दारा प्रायोजित होता है
एक न एक दिन पकड़ में आता है
अनुमान से सबसे बड़ा अंधेरा
अज्ञानता से करो अभी किनारा
तभी छुट पाएगा बुद्धि का कचरा
अपना ही है यह संसार सारा
डर है सबसे बड़ा अंधेरा
डर का करो सामना
साथ में सावधान भी सदा रहना
थोड़ा बिचार कर आगे बढ़ना
मन को पहले साधों
संयम का बांध – बांधों
यह मेरे जीवन का है अनुभव
समझदारी से सब है संभव
नशा जीवन में कभी न लेना
यदि लिया तो पड़गा बहुत रोना
मेरा कहना अवश्य मान लो
मेरे अनुभव से सीख लो
दूसरे के अनुभव से सीखना
अगर खुशी से जीवन है जीना
बचपन से अच्छी आदत अपनाओ
जीवन निश्चित होकर बिताओ
अंधेरे में भी एक रोशनी अवश्य होती है
समझदार को ईशारा ही काफी है
जो रोशनी को पकड़ लेता है
उसका जीवन संवर जाता है।
— अनिल कुमार देहरी