पानी की तलाश
बूँद बूँदों को तरसता
आज का इन्सान ।
प्यास भी अब बढ रही
कैसे बचाये जान।
नदियाँ सूखी बाँध सूखे
अब सूख रहा मेरा तार।
कहाँ से लाऊं इतना पानी
कि मिट जाये मेरी प्यास ।
बादलों से कहता हूँ तो
उनमें भी शिकायतें ।
सागरों से कहता हूँ
अब उनमें न रियायते ।
पेड़ पौधों से मिला
वो आंसुओ से थे भरे।
क्या पता कब काट दो तुम
फिर कैसे होंगे हम हरे।
मुझे सूझता तो कुछ न था।
अब जान का जोखिम भी था।
मुझे जिंदगी बचाने का
बस आखिरी वो पल ही था ।
भगवान ऐसा क्यों करेगा
वो तो सबको पालता।
दोषी हैं इन्सान सारे
ऐसा लगता है पता ।
पेड़ पौधों को बचाओ
तो बच सकेगी जिंदगी
वरना यहाँ न जान होगी
न किसी की जिंदगी ।
(ओम नारायण कर्णधार)