कविता

पाने की चाह

पाने की चाह में

खोने का डर सताता है

बिना कुछ पाए ही

दिल सहम जाता है

फ़ितरत में जुड़ा है

ये डर जाना सहम जाना

रुका था न रुकेगा

इंसाँ का बहक जाना

लाख दुआएँ कर लो

फिर भी फ़ितरत न मिटेगी

ये ज़ोफ़-ए-इंसाँहै

जनाज़े तक रहेगी

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

०२/०६/२००२

शब्दार्थ:

१. फ़ितरत – स्वभाव २. ज़ोफ़-ए-इंसाँ- मनुष्य की कमजोरी

डॉ. रूपेश जैन 'राहत'

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