कविता

ये चालिस का दौर है

उम्र हम पर
हावी नहीं हो सकती
क्योंकि ये चालिस का दौर है

बालों की हल्की सफैदी
छिपा लेगें कानों के पीछे ही
हर शौक को जिन्दा रखेंगे

हर मात को दगा देगें
जिन्दगी की शतरंज की बिसात पर ।
ये चालिस का दौर है

खुमारी है नयी नयी
दादी ,नानी बनने की चाह भी
न अब मेकअप की चाह
न ब्रेकअप का डर है
ये चालिस का दौर है

बनते थे शेर जो मियांजी
अब घिरयातें है
आगे पीछे डोलकर
अपना प्रेम जताते है
ये चालिस का दौर है
बस हम
खुद ही खिलखिलाते है ।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान