“गज़ल”
बह्र 2122, 2122 212, काफ़िया, आ स्वर, रदीफ़- जाएगा
“गज़ल”
हाथ कोई हाथ में आ जाएगा
मान लो जी साथियाँ भा जाएगा
लो लगा लो प्यार की है मेंहदी
करतली में साहिबा छा जाएगा।।
मत कहो की आईना देखा नहीं
नूर तिल का रंग बरपा जाएगा।।
होठ पर कंपन उठे यदि जोर की
खिलखिला दो लालिमा भा जाएगा।।
अधखुले है लब अभी तक आप के
खोल दो मुख चाँद उजला जाएगा।।
भाल पर बिंदी लगी जिस नाम की
काग भी मुंडेर पर गा जाएगा।।
भोर की परवाह प्रिय करना नहीं
गुंजिका पर बौर खिलता जाएगा।।
नैन के काजल अभी जो बह रहे
बादलों का गुन सँवरता जाएगा।।
उड़ रहे भौंरे अभी जो दूर तक
देखना दिग कालिमा पा जाएगा।।
बादरी है जो अभी अठखेलती
बाँध पर पानी भरा आ जाएगा।।
छोड़ दो चिलमन को दांतों से तनिक
नीम कड़वी को मधुरता जाएगा।।
वाद औ प्रतिवाद भी अच्छे लगे
जब विवादे हल सुलझता जाएगा।।
क्रोध से किसको मिली प्रियपात्रता
आचमन कर जल भरा आ जाएगा।।
वक्त अपने आप तो आता नहीं
ढल रहा सूरज सुबह ला जाएगा।।
शाम कहती है सखी सुन चाँदनी
रात का भूला परत आ जाएगा।।
मान ले यह सत्य का फेरा अटल
बंधनों में लिप्त दिल भा जाएगा।।
आ लगा ले आज इसको ही गले
क्या पता कब पल हिलमिला जाएगा।।
आज गौतम हो रहा है बावरा
खोल दे खिड़की चला आ जाएगा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी