राजनीति

आंदोलन के सहारे ही होगा भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण

29 अक्टूबर 2018 के दिन जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अयोध्या विवाद की सुनवाई शुरू की तथा जब वह मात्र तीन मिनट में ही तीन माह के लिए टल गयी और जब जजों ने उसमें यह टिप्पणी कर दी कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का मामला हमारी पहली प्राथमिकता में शामिल नहीं है तब जैसे ही पूरे देशभर में यह समाचार फैला उससे पूरे देश में गहरी निराशा का भाव जागना स्वाभाविक ही था। जब देशभर में अब यह मांग पूरी तरह से जोर पकड़ चुकी है कि अब अयोध्या विवाद का उचित समाधान न्यायालय को कर देना चाहिए, उस समय इस प्रकार से सुनवाई का टल जाना निःसंदेह निराशा व जनाक्रोश का वातावरण पैदा कर देता है। आज हिंदू जनमानस में ही नहीं अपितु जो मुस्लिम समाज भी चाहता है कि अब मामले का अंत होना चाहिए, वह भी कुछ सीमा तक ही निराश हुआ है।
सीधी सी बात यह है कि 29 अक्टूबर की सुनवाई टलने से जहां हिंदू जनमानस के मन में असहनीय पीड़ा तथा घोर निराशा का अनुभव किया गया, वहीं कटटर मुसलमान और उनके वोट बैंक पर जीवित रहने वाले कतिपय तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों तथा कपिल सिब्बल और उनके सहयोगी वकीलों के चेहरे पर विजयी मुस्कान देखी जा रही थी। जो लोग सुनवाई टलने से खुश नजर आ रहे थे और वही लोग केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अध्यादेश लाने व संसद से कानून बनाकर मंदिर निर्माण की चुनौती दे रहे थे। अगर मोदी सरकार अध्यादेश या कानून लेकर आती है, तब यही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग संसद में अभूतपूर्व हंगामा करेंगे और फिर सुप्रीम कोर्ट को रात में ही खुलवाने का अवश्य प्रयास करेंगे। सभी धर्मनिरपेक्ष दल देश के विकास में महाबाधक और दोमुंहे जहरीले सांप हैं।
यहां पर सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि जहाँ एक ओर तो अध्यादेश व कानून लाने की मांग जोर पकड़ रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, पी चिदम्बरम् तथा शशि थरूर जैसे नेता अपने बयानों से आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह का कहना है कि जिस प्रकार से विवादित जगह पर मस्जिद नहीं बन सकती, उसी प्रकार से विवादित स्थल पर मंदिर का निर्माण भी नहीं किया जा सकता। पी चिदम्बरम अध्यादेश व कानून लाने के प्रयास को अपने एक लेख में असंवैधानिक कदम बताकर अपनी मंशा को जगजाहिर कर रहे हंै, वहीं शशि थरूर जैसा जहरीला सांप अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण में यह कहकर अडंगा लगा रहा है कि अच्छे हिंदू कभी अयोध्या में मस्जिद तोड़कर मंदिर का निर्माण नहीं करेंगे। मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर अपनी आजीविका चलाने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने रामभक्त हिंदू जनमानस को धार्मिक नक्सलवादी कहकर उनका बहुत ही घोर अपमान किया है। यह उसी प्रकार है जब उनके पिता ने अपने कार्यकाल के दौरान हिंदुओं का नरसंहार किया था। अभी कांग्रेस का एक बयान आया है कि यदि 6 दिसंबर 1992 को दिल्ली में गांधी परिवार का कोई सदस्य पीएम होता तो अयोध्या कांड हो ही नहीं सकता था अर्थात् बाबरी मस्जिद का विध्वंस नहीं हो सकता था।
इन सभी बयानों से साफ पता चल रहा है कि देश के चारोें कोनों में फैले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल अयोध्या विवाद का हल होने ही नहीं देंगे। अब यही सब कारण है कि एक बार फिर 1992 जैसा वातावरण बनाने की भूमिका संघ व विहिप तथा समस्त हिंदू संगठन संतों के मार्ग निर्देशन में बनाने लग गये हैं। विगत दिनों दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संतों ने पहली बार धर्मादेश जारी किया और केंद्र सरकार से तत्काल कानून या अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने की मांग की। वहीं उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी अयोध्या में अतिशीघ्र भव्य मंदिर निर्माण के लिए सक्रिय हो गया है। संघ व विहिप के बड़े प्रचारकों ने सभी प्रवास व अन्य कार्यक्रम पूरी तरह से स्थगित कर दिये हैं। आगामी 25 नवंबर को अयोध्या सहित तीन शहरों में विशाल धर्मसभाओं का आयोजन किया जाने वाला है। जिसमें सबसे अधिक उत्साह व उत्सुकता 25 नवंबर को अयोध्या में प्रस्तावित जनसभा को लेकर है।
अयोध्या में प्रस्तावित जनसभा के लिए सभी संगठनों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 18 नवंबर को राजधानी लखनऊ में अयोध्या चलो के नारे के साथ बाइक संदेश यात्रा निकाली गयी। इससे पूर्व वाराणसी में संघ के सर संघचालक माननीय मोहन भागवत जी ने छह दिनों तक श्रीराम मंदिर आंदोलन पर गहन विचार विमर्श किया और गहन रणनीति पर व्यापक चर्चा करते हुए कहा कि संघ ने राम मंदिर पर जनआग्रह की योजना बनायी है। इसमें अधिक से अधिक लोगों को साथ लेने व उनको समझाने की जरूरत है। संघ परिवार लोकतांत्रिक तरीके से राम मंदिर आंदोलन को लेकर आगे बढ़ रहा है। राम मंदिर आंदोलन में किसी का विरोध हमारा उददेश्य नहीं है, अपितु हमें अपनी बात जनता व सरकार के समक्ष रखनी है। छह दिवसीय प्रचारक वर्ग शिविर में कार्ययोजना 2019 के तहत बृहद चर्चा में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए माहौल बनाने व और विकास कार्यांे को श्रीराम से जोड़कर रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने पर व्यापक मंथन किया गया है।
यही कारण है कि प्रदेश की योगी सरकार अब आने वाले दिनों में अपने हिंदू एजेंडे और विकास से संबंधित गतिविधियों को और गति देने जा रहे हैं। सभी संतों और महंतों तथा नेताओं ने अपने बयानों से वातावरण में कुछ गर्मी लाने का काम भी शुरू कर दिया हैं। श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन को लेकर तेज गतिविधियां शुरू हो गयी हैं। संघ व विहिप का अब एक ही नारा है- आगामी 25 नवंबर को अयोध्या चलो। अब कहीं कोई अन्य गतिविधि व आयोजन नहीं होंगे। चित्रकूट से लकर विंध्याचल तक और अयोध्या से लेकर लखनऊ तक बैठकों व रैलियों का दौर बहुत तेज हो गया है।
विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा का कहना है कि मंदिर निर्माण का संकल्प संतों के आशीर्वाद के बिना पूरा नहीं हो सकता। इसलिये मध्य और पूर्वी यूपी में स्थापित मठ-मंदिरों पर ध्यान केंंिद्रत कर वहां के संतों से अयोध्या चलने का आग्रह किया जा रहा है। प्रदेश की सभी धर्मनगरियों में संपर्क कर संतों व पुजारियों से भी भाग लेने का आग्रह किया जा रहा है। अकेले विश्व हिंदू परिषद ने पांच लाख लोगों से संपर्क व उनको अयोध्या चलने के लिए पे्ररित करने का संकल्प लिया है। विश्व हिंदू परिषद ने एक पोस्टर जारी किया है जिसकी काफी चर्चा हो रही है। पोस्टर में स्वर्गीय महंत अवैद्यनाथ, स्वर्गीय रामचंद्र परमहंस और अशोक सिंघल के साथ युद्धरत भगवान श्रीराम की तस्वीर छापी गयी है। जैसे-जैसे समय निकट आ रहा है वैसे-वैसे संघ व विहिप सहित सभी संगठनों ने अयोध्या की धर्मसभा के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। 18 नवंबर को लखनऊ में विशाल मोटर साइकिल यात्रा निकाली गयी। जिसमें संघ के विभाग कार्यवाह अमितेश और सह प्रांत कार्यवाह प्रशांत भाटिया उपस्थित रहे।
राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1992 में हुईं यादें एक बार फिर से ताजा होने जा रही हैं। वहां होने वाली धर्मसभा के लिए लखनऊ में घर-घर में मंदिर निर्माण के लिए जोत जलेगी और छतों पर भगवा पताका लगाने जैसे कई कार्यक्रम 24 नवंबर की रात तक किये जायेंगे। आगामी 23 नवंबर को भी लखनऊ में विशाल संकल्प यात्रा का आयोजन किया जायेगा। जगह-जगह प्रभात फेरियां निकलाने का कार्यक्रम निर्धारित कर दिया गया है। आगामाी 23 नवंबर को छतों से शंखनाद करने की योजना बनायी गयी है।
रामायण में प्रसंग है कि जब भगवान श्रीराम लंका में चढ़ाई के लिए समुद्र से शांतिपूर्वक रास्ता मांग रहे थे, लेकिन जब दो दिनों तक उन्हें रास्ता नहीं मिला तब वह भी अधीर हो उठे थे और अंततः उन्हें अपने तीर से कमान को निकाला ही पड़ गया था और समुद्र को रास्ता देना पड़ गया था। भगवान श्रीराम मर्यादा पुरूष हैं। अभी हिंदू जनमानस लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप ही मंदिर निर्माण के लिए रास्ता मांग रहा है। अतः वर्तमान में जो लोग मंदिर निर्माण का रास्ता रोक रहे हैं वह उसी समुद्र के समान हो गये हैं। धैर्य की सीमा लगातार समाप्त हो रही है तथा हिंदू जनमानस अपने तीरकमान बाहर निकालने के लिए व्यग्र हो रहा है। यदि यह बाहर आ गया तो कुछ भी संभव है, जिसमें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल तो साफ हो जायेंगे।

मृत्युंजय दीक्षित