ग़ज़ल – पतवार
कैसा यह संसार है बाबा ,
पैसा है तो प्यार है बाबा ||
टूटी हूई पतवार है बाबा ,
और जाना उस पार है बाबा ||
पहले यह दुनिया , दुनिया थी ,
अब काला बाज़ार है बाबा ||
झूठ से जब इज्जत मिलती है |
सच कहना बेकार है बाबा ||
जिसको जो चाहे कह डालो,
कौन यहाँ खुद्दार है बाबा ||
रोगी को भगवान बचाये ,
वैद्य खुद बीमार है बाबा ||
आओ ‘’निधि‘’ छाता खोले ,
बारिश का आसार है बाबा ||
मुफ़लिस के बच्चे रोते हैं,
क्यों आता त्योहार है बाबा ||
— नसरीन अली ‘’निधि’’