इन्तजार
बहुत पहले एक शेर की पंक्तियाँ पढ़ी थी । कुछ कुछ ऐसे थी
दिल दिया एतबार की हद्द थी, जान दे दी प्यार की हद्द थी,
मर गया मैं खुली रही आँखें, ये मेरे इंतज़ार की हद्द थी ।
बचपन में पढ़ा एक नाटक बहुत चर्चित हुआ था ‘इंतज़ार’ । इसमें मंच पर एक व्यक्ति आता है इधर उधर देखता है फिर एक कुर्सी पर बैठ जाता है । बार बार घडी की और देखता है । कुछ घंटे ऐसे ही बैठकर घडी देखता रहता है । मंच का पर्दा गिर जाता है नाटक समाप्त हो जाता है । कुछ लोगों ने इस नाटक को बहुत पसंद किया अधिकाँश ने नाटक थिएटर में तोड़ फोड़ कर डाली की यह क्या बकवास है ?
आज मुझे इसी पर लिखने का मन आ गया ।
हालत कह रहे हैं मुलाक़ात नहीं मुमकिन
उम्मीद कह रही है थोड़ा इन्तजार कर ।
बड़ी बेताबी है, कितना इन्तजार करूँ,
वो आये तो कैसे उसे प्यार करूँ,
उसे तो सबसे मोहब्बत है फिर भी मैं
आखरी सांस तक उसका इन्तजार करूँ ।
कभी खत्म ना हो यह इन्तजार,
ऐसी दिल की है पुकार,
कब रास्ता बन जाए मंजिल,
उस दिन का है इन्तजार ।
वो कौन है जिसका है इंतज़ार ?
वो कौन है जो कर रहा इंतज़ार ?
जिसका अंत ना हो अंत तक
उसका है मुझे इंतज़ार ।
किसका कौन करे इंतज़ार ?
फिर भी चाहत दिल में बरकरार ।
भूले ना भुलाये बार बार
जिसका कर रहे इन्तजार ।
दिल को करार नहीं आता है,
हर पल उसका इन्तजार रहता है,
दिल उसके लिए बेकरार रहता है,
इन्तजार कभी खत्म ना हो,
इस बात का हमेशा ख्याल रहता है
इन्तजार में बसता प्यार,
इन्तजार को नमस्कार,
इन्तजार बस इन्तजार ।
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, क्या ग़ज़ब कविता लिखी है! आध्यात्मिकता से सराबोर!
हर पल उसका इन्तजार रहता है,
दिल उसके लिए बेकरार रहता है,
इन्तजार कभी खत्म ना हो,
इस बात का हमेशा ख्याल रहता है
इन्तजार में बसता प्यार,
इन्तजार को नमस्कार,
इन्तजार बस इन्तजार ।
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गुरु नानकदेव के 550वें प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.