कविता

इंतज़ार

सब कहते हैं तुम चले गए …
पर मैं नहीं मानती…
यह जाना भी कोई जाना है!!
अब तक बसी है
तुम्हारी खुशबू घर में
जिनसे महकते हैं मेरे अल्फाज
बिखरे हैं तुम्हारे शब्द
जिनको दोहराती हैं दीवारें
और वह समा जाते हैं
मेरी कविताओं में …
तुम्हारे सपनों का तेज़
अब भी चमकता है मेरी आंखों में…
जो दिन रात करता है प्रेरित …
बनाती हूं अब भी दो कप चाय..
और करती हूँ इंतज़ार
तुम्हारे लौट आने का…
जब तक तुम्हारा इंतज़ार है तुम….!!

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]