इतिहास

चार्ल्स मिशेल दे ल एपी

चार्ल्स मिशेल दे ल एपी (24.11.1712 – 23.12.1789) का जनम फ़्रांस के वर्सालिस शहर के एक धनि परिवार में हुआ था| दे ल एपी के पिता राजा लुइ चौदहवें के वास्तुकार थे और अपने बेटे को एक कैथोलिक पादरी बनाना चाहते थे, किन्तु गैर कैथोलिकों का विरोध करने से इंकार करने के कारण चर्च ने पादरी नहीं बन्ने दिया| इसके बाद दे ल एपी ने कानून की पढ़ाई की, लेकिन चर्च के दबाव में उन्हें लाइसेंस देने से भी इंकार कर दिया गया; तब वे सामाजिक कार्यों की और मुड़ गए|

एक बार एपी ने दो बधिर बहनों को इशारों में बातें करते देखा, इससे एपी को बधिरों की स्थिति और समझ में रूचि आई; तब यूरोप में बधिर शिक्षा के अयोग्य माने जाते थे| 1760 में एपी ने बधिरों के लिए स्कुल बनाया और पूरी जीवन उसका संचालन किया| फ़्रांस की क्रांति के समय एपी की मृत्यु हो गई|

यद्यपि क्रांति के बाद चर्च के अधिकार समाप्त कर दिए गए, तथापि फ़्रांस के धनी लोगों और उनके संरक्षण में रहने वालों को क़ानूनी मृत्युदंड दिया गया; तथापि नेपोलियन बोनापार्ट की सत्ता बन्ने के बाद यह बंद कर दिया गया|

माना जाता है कि एपी को फ्रांस की क्रांति में हत्या कर दी गई थी, किन्तु फ्रांस की सरकार यह नहीं मानती। 1890 में फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना के बाद एपी के काम को सम्मान मिला| एपी को “बधिरों का पिता” की उपाधि भी दी गई, उनके स्कुल में बधिरों द्वारा बनी सांकेतिक भाषा को अमरीका में भी स्वीकार किया गया और सांकेतिक भाषा को चर्च की शिक्षा के लिए भी उपयोग किया गया|

फ़्रांस की सरकार आज दे ल एपी का सम्मान करती है, यहाँ तक की चर्च भी सम्मान करती है कि उनके नाम से बधिरों को चर्च के अधीन किया जा सके (जबकि पहले तिरस्कृत करते थे)| किन्तु भारत में विकलांग हितैषियों का सम्मान इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि यहाँ आज भी दलित तुष्टिकरण को महत्त्व देते हैं|

#विकलांग_बल_समाचार

अनुज मेहता

विकलांग बल कार्यकर्त्ता गुरुग्राम