कहानी

तबाही

‘सत्य घटना पर आधारित’
आज फिर आयी वो तीन दिसंबर की रात”…हमारे जख्मों को कुरेदने !” चौंतीस वर्ष पूर्व हुए हादसे से अभी तक नही उबर पाये हैं चन्द्र और उनकी पत्नी निर्मला तीन दिसम्बर की आधी रात….जिसमें यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस निर्मला की खुशहाल जिंदगी को एक झटके में तहस-नहस कर गयी। तीन दिसम्बर “1984” के समय कड़कड़ाती ठंड…किसी ने सोचा भी न था कि ये रात ऐसी तबाही लेकर आएगी।
उस त्रासदी का शिकार हुये चन्द्र का परिवार आज भी उस हादसे से नही उबर पाया….उस त्रासदी में चन्द्र ने भी अपना पन्द्रह साल का बेटा खोया था । एक ही चिराग था। जो बुझ गया..दोनों के बुढ़ापे की लाठी ही टूट गयी..पत्नी निर्मला तो पागल सी हो गयीं थी। वो जहरीली गैस निर्मला के शरीर,और दिलो दिमाग में भी गहरा असर छोड़ गयी थी ।आज फिर उस हादसे की याद ताजा हुई,आज भी वहां दिखता है उस भयानक हादसे का असर !” इन पच्चीस सालों से जबसे निर्मला कुछ ठीक हुई तो दोनों पति-पत्नी उस जगह जाते हैं ।और अपने बेटे और उन हजारों लोगों को जो इस भयानक हादसे का शिकार हुए थे। उन सभी को श्रद्धांजलि अर्पित करने….
चन्द्र अपनी पत्नी निर्मला को हर बार की तरह सांत्वना देते हुए बोले की” हमी बस दुखी नही हैं निर्मला…यहां कई अनगिनत लोग हैं ,जो शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन का शिकार हुए ।कइयों की कोख उजड़ी हैं…और भी कई ऐसे हैं जो किसी ने अपना पिता तो कोई पुत्र खोया है तो कइयों के घर उजड़े हैं…ये दिन उन सबके लिए काले अध्याय से कम नही है ।जिसका दुःख दर्द आज भी हम सबके जेहन में जिन्दा है।
चौतीस वर्ष बीत गए..चलो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उस हादसे में शिकार हुए हर व्यक्ति की आत्मा को शान्ति मिले !!”

✍️सरला तिवारी

सरला तिवारी

मूल स्थान रीवा (म.प्र.) निवासी- जिला अनूपपुर (म.प्र.) शिक्षा - स्नातक गृहिणी अध्ययन और लेखन में रूचि है. ईमेल पता [email protected]