एक पाती लिखनी तुमको
एक पाती लिखनी तुमको क्या आज लिखूँ
विरह कहूँ प्रिय या मिलने के अंदाज लिखूँ ।।
आन मिले जब निपट अँधेरी रात प्रिये
सिहर उठा जब पोर पोर ये गात प्रिये
पकड़ हथेली मचल पड़े जब सन्नाटे थे
तकि दर्पण मुख बिम्ब पसरती लाज लिखूँ ।।
आलिंगित से दृष्टिपात मन भीतर मंथन
भ्रमित चित्त पथ भटका स्वासों के कम्पन
शब्द तालु अटके अधरों पर रतिमय गुंजन
वो स्वेद छलकते तनु के सुर्ख लिहाज लिखूं ।।
रोम रोम पे फगुवाई जब अमराई की बौर
पात पात प्रिय मंडराया मन जैसे कोई चोर
गंध मदन छुप के जा बैठी अन्तस् के मधु ठौर
आखर आखर जोड़ प्रणय के वो राज लिखूँ ।।
प्रियंवदा अवस्थी