कविता

“कठपुतली“

हां,हम बन
जाते हैं कठपुतली..
निर्जिव, निष्प्राण,
आश्रित…
भावनाओंके हाथों
धागा हिलता है और
हम नाचते – गाते,
हसते – रोते…

हां पर
भावनाएं तो
हमारी अपनी, फिर ?
फिर क्यों
हम बन जाते हैं
कठपुतली???
क्यों दे देते हैं
किसी को अपनी
भावनाओं को छेड़ने
का अधिकार?
जो जब चाहे हंसाए
जब चाहे रुलाए ।

कविता सिंह

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]