ग़ज़ल
जब-जब सब कुछ आम करोगे।
खुशियाँ भी नीलाम करोगे।।
अगर कहोगे दिल की बातें।
ख़ुद को तुम बदनाम करोगे।।
उदयाचल के सूरज हो तुम।
ढलकर क्या तुम शाम करोगे?
बोल उठेगें पत्थर भी जय।
जब तुम अच्छा काम करोगे।।
हो जाओगे उतने तनहा।
जितने ऊँचे दाम करोगे।।
रिश्तों में नफ़रत ख़ुदग़र्जी।
कब तक उन्हें सलाम करोगे?
इश्क़ सदाकत की दौलत तो।
जीवन भर आराम करोगे।।
इसी तिलिस्मी दुनिया को तुम।
केशव पावन धाम करोगे।।
सह लोगे हर आँधी – तूफाँ।
‘अधर’ यकीं जब राम करोगे।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’