एक मुसाफ़िर चला गया
हम सबके नयनों का तारा, मेरा अपना राजदुलारा
हमसे अपना हाथ छुड़ाकर , एक मुसाफ़िर चला गया ।
हर हर महादेव कहता वह प्रात:काल मिला मंदिर पर
कुशलक्षेम हमने पूछा तो बोला अच्छा नहीं मित्रवर
नहीं पता था यही हमारा अन्तिम दर्शन बन जायेगा
हमको अपने में उलझाकर एक मुसाफ़िर चला गया ।
वैसे तो हरएक प्राणी का साथ छूट ही जाता है
पर कुछ ऐसे लोग हैं जिनका जाना बहुत सताता है
सबको अपनें गले लगाकर सबको अपना प्यार दिखाकर
हमसबके दिल को बहलाकर एक मुसाफ़िर चला गया ।
यही प्रार्थना स्वर्गलोक में तेरी आत्मा शान्त रहे
परमात्मा के श्री चरणों में तुझे सदा स्थान मिले
रहो सदा निर्द्वद यहाँ पर सदा प्रभु का भजन करो
हम सबको यह पाठ पढ़ा कर एक मुसाफ़िर चला गया ।
— शशिकांत त्रिपाठी
( अघोर बनारसी)