“गज़ल”
बह्र 221 2121 1221 212, काफ़िया- मोती, ओती स्वर, रदीफ़- उठा लिया
“गज़ल”
निकला था सीप से कहीं मोती उठा लिया
मैने भी आज दीप से ज्योती उठा लिया
खोया हुआ था दिल ये किसी की तलाश में
महफिल थी द्वंद की तो चुनौती उठा लिया।।
जलने लगी थीं बातियाँ लेकर मशाल को
मगरूर शाम जान सझौती उठा लिया।।
चर्चा जो चल पड़ी लगे तूफान आ गया
कैसे औ क्या हुआ कि फिरौती उठा लिया।।
ये है बाजीगरी हुकम के नए दहले
क्या समझ आया तुझे सोटी उठा लिया।
था मंच दूसरों का तो वक्ता बहुत वहां
गौतम भी आदमी है पनौती उठा लिया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी