धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राम-जन्मभूमि मन्दिर अयोध्या की प्राचीनता

प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय अद्‍भुत प्रतिभा धनी के इतिहासकार हैं। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला इतिहास एवं पर्यटन प्रबन्धन विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उनके शोध और कार्यक्षेत्र का और विस्तृत विकास हुआ। उनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि बिना पुष्ट प्रमाण के वे एक वाक्य भी नहीं लिखते हैं। संप्रति वे ‘स्थापत्यम’ (जर्नल आफ़ दि इन्डियन साइंस आफ़ आर्किटेक्चर एण्ड अलायेड सर्विसेस) के अतिथि संपादक हैं और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा शोध परियोजना समिति, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) के सदस्य हैं। उन्होंने अभी-अभी एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है — ‘राम-जन्मभूमि मन्दिर अयोध्या की प्राचीनता’ जिसे एस्टैन्डर्ड पब्लिशर्स इण्डिया, नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। रामजन्मभूमि की ऐतिहासिकता का ऐसा प्रमाणित विवरण विरले ही किसी अन्य पुस्तक में उपलब्ध हो।
यह पुस्तक अयोध्या का प्राचीनतम संदर्भ पुर(नगर) के संकेत से अथर्व वेद में वर्णित विवरणों से आरंभ होती है। वैदिक नगर वास्तु-परम्परया कालिदास के रघुवंश में चतुर्मुखी तोरण-धारिणी ब्रह्मा के रूप में प्राप्त है। अयोध्या में रामजन्मभूमि का प्रसिद्ध परिसर हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र एवं सांस्कृतिक धरोहर है। ब्रिटिश और मुसलमानी अभिलेखों में भी इस स्थान का उल्लेख ‘रामजन्मभूमि’ या ‘जन्मभूमि’ या जन्मस्थान के रूप में है। इस स्थान के विवादित ढाँचे की ऐतिहासिकता मात्र १५२८ ई. तक जाती है जिसकी रचना पूर्वकालिक विष्णु-हरि मन्दिर के ध्वंसावशेष का प्रयोग करते हुए की गई। इसे बाबर के सेनापति मीरबाकी ने ध्वस्त किया था। उस समय आक्रमणकारी की जघन्य बर्बरता का उल्लेख सन्त तुलसीदास जी ने अपने ‘तुलसी दोहा शतक’ में किया है —
तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किए अनखानि।
राम जनम महि मन्दिरहिं तोरि मसीत बनाय॥
कवितावली में तुलसीदास जी ने हक जताते हुए लिखा है — ‘माँगि के खैबो मसीत को सोइबो’। प्राचीन मन्दिर के अवशेष विवादित ढाँचे में प्रयुक्त थे, अलंकृत स्तंभ व प्रस्तर खण्डों पर हिन्दू प्रतीकों का अंकन था। ६ दिसंबर १९९२ को सन्दर्भित ढाँचे की दी्वार के मलबे से प्राप्त १२वीं शती का संस्कृत में लिखा अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसमें गाहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र के राज्यकाल (१११४-११५५) में साकेत के मण्डलपति मेघसुत द्वारा विष्णु-हरि के भव्य मन्दिर बनाए जाने का उल्लेख है — साकेतमण्डलपति … मेघसुत: श्रुताढ्य: … टंकोत्खात विशाल शैल शिखर श्रेणी शिला संहति व्यूहैर्विष्णुहरेर्हिण्यकलश श्री सुन्दरं मन्दिरं…कृतं, जिसे आयुषचन्द्र ने पूरा कराया था। इसी मन्दिर को मीरबाकी ने ध्वस्त किया था। अभिलेख में मेघसुत के पूर्व के राजाओं द्वारा भी मन्दिर को रचे जाने और संवारे जाने का उल्लेख है… पूर्वैरर्प्यकृतं नृपतिर्भि:…। अति प्राचीन कालीन अयोध्या के उद्धार का श्रेय जनश्रुति में पौराणिक परम्परा के आधार पर ‘विक्रमादित्य’ को है। ‘विक्रमादित्य’ विरुद वाला सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं। २००३ के पुरातात्विक उत्खननों में गुप्तकालीन ईंटें, कलाकृतियाँ एवं चन्द्रगुप्त का सिक्का भी मिला है। रामजन्मभूमि स्थल पर प्राचीनतम मन्दिर का निर्माण चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय (लगभग ३७५-४१४ ई,) तक सिद्ध होता है। जयपुर के सवाई राजा जयसिंह ने मुगल पीढ़ी के छठे बादशाह फ़र्रुखशियर से रामजन्मभूमि स्थल की ९८३ इलाही वर्गगज भूमि प्राप्त कर राम मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया था। संबन्धित प्रपत्र जयपुर के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित है। इस सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरवयुक्त धर्म-स्थली को बहस और मुकदमों से निजात मिलनी चाहिए। इतिहास के नजरिए से मुकम्मल न्याय यही होगा कि रामजन्मभूमि स्थल पर मन्दिर का पुनर्निर्माण कराया जाय।
प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जी ने बड़े श्रम, लगन और शोध के साथ उपरोक्त पुस्तक की रचना की है जो पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.