मेरी तन्हाई
मैं जब अपनी तन्हाई के साथ,
अकेला जब भी होता हूँ ,
क्यो तुम चली आती हो ,
मेरी खामोश आंखों में,
क्यो तुम झाँक कर इनमें,
अपनी झील सी आंखों में ,
मुझे डुबोना चाहती हो उनमें ।
मेरी खामोश हुए लब ,
जो कुछ न कहते कभी,
अपने लबों को उन पर टिका,
बोलने को मजबूर करना चाहती हो ।
मेरे दिल धड़कन जो ,
धड़कनी कम हो गई ,
अपने दिल की धड़कन सुना,
उनको बेहिसाब धड़कानां चाहती हो।
मेरे हाथ जो किसी को ,
सहलाना भूल गए ,
अपनी बिखरी जुल्फों को,
सवांरने मुझे देना चाहती हो,
मैं हर वो खुशबू ,
जो तेरा अहसास कराती है,
उसी खुशबू को क्यो ,तुम
करीब आ महसूस करवा रही हो।
मेरा हर वो अहसास ,
जो तुझसे जुड़ा है ,
क्यों तुम यादों के सहारे,
आ कर मेरे पास ,
मुझे अपनी याद दिला रही हो ।
क्यो आती हो तुम ,
बार बार पास मेरे ,
रहने दो मुझे तन्हा ,
मेरी तन्हाई के साथ ।
— सारिका औदिच्य