टाइगर स्टेट दर्जे की दोबारा उम्मीद किंतु नरभक्षीय जानवरों पर कड़ी निगरानी भी आवश्यक
‘फिर मिल सकता है मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा’ की खबर सुर्ख़ियों में आई |वर्तमान में 2018 में इनकी संख्या में वृद्धि जारी है जो की संरक्षित क्षेत्रों में संरक्षण की दिशा में बाघों की संख़्या में वृद्धि टाइगर स्टेट दर्जा के हक़ को पक्षधर बनाएगा |वैज्ञानिक तरीके बाघों की गिनती और वन विभाग के प्रयासों से दर्जा अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा|इसके दूसरे पक्ष पर गौर करें तो मध्यप्रदेश में तेंदुए के देखे जाने व तेंदुए के हमले से जानवरों ,इंसानों के घायल होने की घटनाए समाचार पत्रों में तक़रीबन रोजाना पढ़ने में आती रही।तेंदुए को पकड़ने लिए पिंजरे में जानवर रख कर उसे पकडे की प्रक्रिया अपनाई जाती रही है।पंजों के निशान और गांव वालो की निशानदेही पर अनुमान लगाया जाता है।ये घटना गर्मी में ज्यादा होती है।जंगलों से पानी और खाने कमी होने से अब कई स्थानों पर जंगल के जानवर इंसानों के रहवासी इलाको में आने लगे है।सुझाव ये है की जिस प्रकार विदेशों में जानवरो के गले में पट्टे में ट्रांसमीटर फिट किया जाता एवं ट्रांक्यूलाइजर गन इस्तेमाल की जाती है|जीपीएस सिस्टम द्धारा उसकी लोकेशन को पता किया जाकर पकड़ने में ,व् निगरानी से भी उसकी वास्तविक स्थान का पता लगाया जाता साथ ही खास स्थानों पर जैसे जलाशयों,नदी ,नालो गुफाओं पर कैमरे लगाए जाते है|ठीक वैसी ही प्रक्रिया प्रयोग में लाने से खूंखार नरभक्षीय जंगली जानवर के हमले से निर्दोष इंसानों और जानवरों को शिकार होने से बचाया जा सकता है।तेंदुए,बाघ आदि आदमखोर जानवरों से संघर्ष कर जान बचाने वाले साहसी लोगों तात्कालिक सहायता राशि में बढ़ोत्तरी की जाना चाहिए | अक्सर शिकार का पीछा करते हुए तेंदुए ,बाघ आदि बिना मुंडेर के कुएं में गिर जाते है|पता नहीं चलने पर मृत हो जाते है|इस हेतु कुओं पर मुंडेर का निर्माण आवश्यक है|
— संजय वर्मा “दृष्टी “
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