कभी धड़कन तो कभी दिल
कभी समन्दर, तो कभी साहिल हम हुए।
कभी धडकन, तो कभी दिल हम हुए।
इतनी खता है कि सच को सच ही कहा,
आज से गुनाहगारों में शामिल हम हुए।
वो कत्ल कर के बच ही निकले यारों मगर,
लाश के सिरहाने खडे थे, कातिल हम हुए।
उनकी चाहत के फूल, औरों के मुकद्दर हुए,
चलो उन की नफरत के ही काबिल हम हुए।
जीता है डर के सायें में बुजदिलों का शहर,
“सागर” हर तूफान के मुकाबिल हम हुए।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”