कविता

दिसंबर चलने को है

पैरों की थकन क्या कहूँ
उम्र हुई चलते चलते

हर बार दिसंबर आता है
यादें सुहानी छोड़ जाता है

दिसम्बर की इतनी कहानी है
जैसे याद आई गुजरी जवानी है

कभी टीस सी रह जाती है
तब तक जनवरी आ जाती है

कुछ सोचू तो फुर्र हवा सी
फरवरी भी उड़ जाती है

होली के रंग बसंत की बहार
दिल झूमें बार- बार ओ दिलदार

अमलतास के पीले पीले गुच्छे
दावानल सा दहकता पलाश

अप्रैल में बैसाखी के मेले की रौनक
अनाज स्वर्ण कणों सा बिखर जाता है

सहेजते समेटते दिन जाने कब
मई की दुपहरी में गर्म हवा दे जाता है

जून की तपिश से जलता तन
फुहारों का इंतजार लंबा हो जाता है

सावन कब चुपके-चुपके काली घटा
बन के धरा पर बरस जाता है

बादल विरहन के मन में अगन के शोलों को
भड़का कर कौंध कौंध ‌डरा जाता है

अगस्त के आते-आते
राखी के धागे से जाते है

शिक्षकों को समर्पित सितंबर हमारा
जाते ही रावण जलाने ‌की तैयारी

अक्टूबर आते ही आई दीपोत्सव की बारी
नवंबर बालदिवस में चला जाता है

हाय ये दिसंबर फिर आ जाता है
यादों की पोटली सिर पर उठाए

पैरों की थकन क्या कहूँ
उम्र हुई चलते चलते

अर्विना गहलोत

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 [email protected] प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु