लघुकथा

दृढ़ संकल्प

अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे शांति की नज़र अख़बार की सुर्ख़ियों पर पड़ी। दलित महिला पर गाँव वालो का अत्याचार…
ये कोई नई बात नहीं थी, आये दिन महिलाओं पर केंद्रित कोई न कोई अप्रिय घटना अख़बार की सुर्ख़ियो में आती ही रहती है।
उसने अपना ध्यान हटाया। पर यह तो उसके अपने गाँव सारंगपुर की घटना थी। शांति ने अखबार उठाया और वह उस समाचार को पढ़ने लगी।
यह तो उसकी सहेली मणि थी, जिसको लोगों ने पत्थर मारा था। वह समाचार पढ़ती गयी, मणि को एक गैर पुरुष के साथ देखा गया और वह पुरुष तो …..
“हे भगवान ये क्या हो गया! मोहन को तो मैंने ही भेजा था, मणि के पास…. तो क्या मोहन भी….।”
शांति के मन में सैकड़ों प्रश्न उठ रहे थे। शांति अपने कमरे में गयी और उसने जल्दी से अपना बैग पैक किया और घर से बाहर निकल कर अपने ड्राईवर से कार निकालने का आदेश दिया और सारंगपुर की ओर चलने को कहा। रास्ते में उसके सामने उसका बिता हुआ कल उसके साथ चल रहा था। गाँव में मणि और अन्य लड़कियों के साथ कैसे वह छुप-छुप कर बातें किया करती थी। शांति ठाकुर परिवार से थी और मणि की माँ उसके घर काम करने आती थी, पर उसको पुरे घर में आने-जाने नहीं दिया जाता था। उसका दायरा तय था, अक्सर मणि भी उसके साथ आ जाती थी। बाल-मन ज़ात-पात को क्या समझे, शांति अपने बाबूजी से डरती थी, घर में और कोई बच्चा न होने की वजह से वह मणि को अपने सुख-दुःख बाँट लेती थी। मणि भी उसकी बातों को सुनती और कहती,” दीदी! आप तो भग्यशाली हो, बड़े घर की बेटी हो, हम को देखो….।”
मणि उसको गाँव के बारे में बताती और महिलाओं को लोग कभी-कभी मारते हैं वजह तो नही पता पर हाँ ये सब देखकर मुझे डर लगता है।
शांति कहती, “बड़ी होकर मैं वकील बनूँगी, फिर देखना मैं इन सब से लड़ूँगी।”
आज वह वक़्त आ गया था, शांति ने मोहन को एक पत्र दिया था और कहा था,” मोहन! तुम जिस ओर जा रहे हो, रास्ते में ही मेरा गाँव पड़ेगा, और वहाँ तुम किसी से भी मणि का पता पूछ लेना, कोई भी बता देगा, उसको ये पत्र पढ़कर सुनाना। उससे कहना कि अब मैं सचमुच में एक वकील बन गयी हूँ……।”
मोहन तो उसके ही कहने पर ही गया था, डाक से भी पत्र भेजा जा सकता था, पर मणि के हेम-खेम तो व्यक्तिगत मिलने से ही मिल पाते। वह पढ़ी -लिखी तो थी नही और उनकी बस्ती में पत्र कौन पहुंचायेगा?”
चर्रर्रर्र आवाज़ करती हुई उसकी कार रुक गयी। सामने उसका गाँव था, वह अपने कदम बढ़ाती हुई मणि के घर की ओर बढ़ रही थी, उसके साथ पुलिस भी थी और मोहन भी। आज बाबूजी नही थे, ठाकुरों का अत्याचार पर आज भी जस का तस …..शांति के बढ़ते कदम उसके संकल्प को और भी दृढ़ कर रहे थे।

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377