सत्ता की तक़दीर तुम्हारे हाथों में
सत्ता की तक़दीर तुम्हारे हाथो में ,
लोकतन्त्र की डोर तुम्हारे हाथों मे ।
आया है त्योहार चुनावी मौसम फिर ,
चुनो भली सरकार तुम्हारे हाथों मे।
पाँच साल में आता है ये मौक़ा फिर ,
ज़िम्मेदारी बड़ी करो मतदान सभी।
शातिर ख़ूनी कत्ली को तुम मत चुनना ,
देश की रक्षा भार तुम्हारे हाथों में ।
अपनी ढपली अपना राग सुनाते हैं ,
भाई को भाई से भी लड़वाते हैं ।
दौलत कमा -कमा कर रखे जेबों में ,
हारें वो इस बार तुम्हारे हाथों मे।
सारे वादे झूठे फिर भी यही कहें ,
हम हैं सच्चे हम तो एक हैं लाखों में ।
बाँधो उनका बिस्तर ,खटिया ,लोटा तुम ,
है चुनाव हथियार तुम्हारे हाथों में ।
मतदाता को समझ रहे जागीर सभी ,
सब्ज़बाग़ दिखलाने की तरकीब नयी ।
हमको जो गिनते हैं उनको तौलो तुम ,
बाट -तराज़ू यार तुम्हारे हाथों मे ।
उजले कपड़े पहन के नेता घूम रहे ,
गले मिल रहे हाथ तुम्हारा चूम रहे ।
प्यार भी उनका मौसम के ही जैसा है ,
फूल चुनो क्यों खार तुम्हारे हाथों मे ।
एक कहे कि मंदिर हम बनवायेंगे ,
दूजा कहे कि इंक़लाब हम लायेंगे।
रस्साकशी के खेल में सब ही माहिर हैं ,
हार -जीत व्यापार तुम्हारे हाथों में ।
एक का नारा दूर ग़रीबी कर देंगे ,
दूजा कहे कि बैंक नोट से भर देंगे ।
जाति धर्म के नाम पे टोपी बदलेंगे ,
हारे हर व्यभिचार तुम्हारे हाथों में ।
अपने वोट की क़ीमत तुम भी पहचानो ,
करें सियासत उनकी नीयत को जानो ।
वंशवाद की बेल को अब तुम मत सींचो ,
पानी की है धार तुम्हारे हाथों मे ।
भजन,अजान को मुद्दा बना रहे देखो ,
फूट डालकर भ्रष्टाचार करें देखो ।
नारी का अपमान करे जो दम्भी हो ,
रावण का संहार तुम्हारे हाथों में ।
देश की रक्षा आन -बान की ख़ातिर ही ,
सीमा पर तैनात सिपाही होता है।
शीश काट ले जाये दुश्मन न घुस कर ,
जन -गण का है प्यार तुम्हारे हाथों में ।
देश का मान बढ़ाये नेता ऐसा हो ,
भूख ग़रीबी कष्ट मिटाये ऐसा हो ।
मुक्त करे लाचारी से जो दे शिक्षा ,
न कोई हो बेकार तुम्हारे हाथों में ।
प्रश्न ,प्रश्न ही रह जाये ना अब फिर से
जनता के हर प्रश्नों का हो हल जिससे
ऐसा भारत देश बनाना है हमको
है मौलिक अधिकार तुम्हारे हाथों में ।
लोकतंत्र की जय जय कार सुनायी दे ,
कोई भी भूखा ना कही नही दिखाई दे ।
पूरा करो सभी सपना भारत माँ का ,
अन्त्योदय का भार तुम्हारे हाथों में ।
— डा नीलिमा मिश्रा