कविता

करें मिलकर अभिनंदन का अभिनंदन

आओ मिलकर करें हम सब
अपने पूर्वजों का अभिनंदन
बीज मिटटी में जो बो गए हैं
करें मिलकर उनका हमसब वंदन

संस्कृति की नींव, ज्ञान का सागर
बड़ों का सम्मान, वासुदेव कुटुंब
कितना कुछ छोड़ गए हैं
करें मिलकर उनका हमसब चिंतन

भौतिक युग के हो गए हम
समय काल का चक्र जो चला है
आत्मा अपनी क्यों सो गयी है
करें मिलकर उनका हमसब मनन

अभिनंदन एक शब्द तो नहीं
ह्रदय से निकला यह उदगार ही नहीं
सच्चे अर्थ में उपयोग करें अब
करें मिलकर अब अभिनंदन का अभिनंदन

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377