अजन्मी
महतारी मै तेरी बेटी थी
न सोचा न विचार किया
जन्म दिया था माता तूने
पलभर में ही मार दिया
रूह न कांपी बिल्कुल तेरी
ये कैसा अत्याचार किया
क्षण में ही खत्म किया रिश्तों को
मुझसे अपना दामन छाड़ लिया
क्या कर्ज था तेरी ममता पर
जो ऐसा व्यभिचार किया
आँखे भी न खोली थी मैंने
और ! तूने होते ही मार दिया
अपनी गोदी और पिता की ऊँगली का
क्यों छीन तूने अधिकार लिया
बोझ बनी क्यो होते ही मै
मन ने ना तेरे हा-हाकार किया
— डॉ. माधवी कुलश्रेष्ठ