कविता

अच्छा लगता है

अच्छा लगता है
तुम्हें देखना, तुम्हीं
से छुपाकर…..
अच्छा लगता है
तुम्हें सुनना , तुम्हारी
ही नजर बचाकर….
अच्छा लगता है
तुम्हारा मुझे देखना
आंखों में लिए अथाह
प्रेम जिससे भींगती
मैं सराबोर हो जाती हूं
अच्छा लगता है
तुम्हारा छूना
पिघल कर बिखर
जाऊं बांहो में तेरी
कर दूं तिरोहित खुद को
अच्छा लगता है
तुम्हारे सीने में
छुपना, लगता है
बच गई जीवन
की हर उलझन से
हर तिरछी नजर से,
अच्छा लगता है
बिन बात की बातें
जो घंटों को मिनटों
में बदलती चली जाती हैं
सुबह से शाम होने
का भी आभास नहीं
मिलता
अच्छा लगता है
तुम्हारा साथ
हर उस पल में
जब साथ चाहिए
होता है,जब होती हूं
संतप्त खुद के परिवेश से
अच्छा लगता है
तुम्हें सोचना
तुम्हारे ख्वाब बुनना
जिसमें मैं होती हूं
और तुम दुनियादारी
से पूरी तरह मुक्त
देखते हैं एक-दूसरे
की आंखों में, उड़ेलना
चाहते हैं सारे एहसास

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]

One thought on “अच्छा लगता है

  • अर्जुन सिंह नेगी

    अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर … सुंदर रचन… सुंदर भाव

Comments are closed.