अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
तुम्हें देखना, तुम्हीं
से छुपाकर…..
अच्छा लगता है
तुम्हें सुनना , तुम्हारी
ही नजर बचाकर….
अच्छा लगता है
तुम्हारा मुझे देखना
आंखों में लिए अथाह
प्रेम जिससे भींगती
मैं सराबोर हो जाती हूं
अच्छा लगता है
तुम्हारा छूना
पिघल कर बिखर
जाऊं बांहो में तेरी
कर दूं तिरोहित खुद को
अच्छा लगता है
तुम्हारे सीने में
छुपना, लगता है
बच गई जीवन
की हर उलझन से
हर तिरछी नजर से,
अच्छा लगता है
बिन बात की बातें
जो घंटों को मिनटों
में बदलती चली जाती हैं
सुबह से शाम होने
का भी आभास नहीं
मिलता
अच्छा लगता है
तुम्हारा साथ
हर उस पल में
जब साथ चाहिए
होता है,जब होती हूं
संतप्त खुद के परिवेश से
अच्छा लगता है
तुम्हें सोचना
तुम्हारे ख्वाब बुनना
जिसमें मैं होती हूं
और तुम दुनियादारी
से पूरी तरह मुक्त
देखते हैं एक-दूसरे
की आंखों में, उड़ेलना
चाहते हैं सारे एहसास
अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर … सुंदर रचन… सुंदर भाव