कविता

अभिशाप

दूर रहो उससे
जो अभिशापित हों
उसकी छाया भी
छीन लेगी हंसी
तेरे होठों की,
दूषित कर देगी
वातावरण में व्याप्त सुगंध को,
कुछ अहिलयाएं
कभी शापमुक्त
नहीं होती,
चाहे राम कर दें
समर्पित अपने सारे पुण्य,
हां दूर रहो उससे ….
जिसकी नियति ही लिख
गई पीड़ाओं से, स्वीकार है
उसे अभिशाप, मत करो
भ्रमित उसे खुशियों की
छाया दिखाकर, खुशियां
रास नहीं उसको….
दूर रहो, दूर रहो बस दूर रहो!!!

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]