साहिल
हिम्मतों को अपनी टूटने न दो
होंसलों को अपने रूठने न दो
जिंदगी ले आये तूफान कितने,
पर नैया को अपनी डूबने न दो !
होंसलें बुलंद हों तो सब कुछ होता हासिल,
मुश्किलों से जूझकर हर शक्स बनता काबिल,
जो न डरता तनिक भी तेज आँधियों से,
उसकी नौका को मिलता ज़रूर है साहिल !
बढ़ता जा तू पथ पर आगे ही आगे राही,
इक दिन पायेगा ज़रूर तू मंजिल मनचाही,
साहिल खुदबखुद चलकर तुझ तक आएगा,
भय को तनिक भी न रख मनमाहीं !
अंधियारे में आशा का दीपक जला,
निराशा को अपने मन से हटा,
साहिल तक पहुँचना हो अगर तूने,
आने वाली मुश्किलों को दूर भगा !
बेवजह आंसूं बहाना छोड़ दे बंदे,
गम जगत को तू दिखाना छोड़ दे बंदे,
साहिल तक पहुंचने का हुनर रख,
अपनी नौका का डगमगाना छोड़ दे बंदे !
— डॉ. सोनिया
अच्छी रचना डाक्टर साहब…. आपका परिचय पढ़कर भी अच्छा लगा … आपको सलाम